पवनमुक्तासन (Wind Release Pose)
शरीर में स्थित पवन (वायु) यह आसन करने से मुक्त होता है इसलिए इसे ‘पवनमुक्तासन’ (Pawanmuktasana) कहा जाता है। इसे अंग्रेजी में Wind Release Pose कहते हैं।
Pawanmuktasana Qick info:
नाम | पवनमुक्तासन (Pawanmuktasana or Pavanmuktasana) |
संस्कृत (Sanskrit) | पवनमुक्तासन |
अंग्रेजी | Wind Release Pose, Gas Release Pose |
समय | 2-3 मिनट |
प्रभावित अंग | पाचन तंत्र, सीना, फेफड़े, विसर्जन तंत्र, पैंक्रियाज, गोनाड्स, एड्रीनल, थायमस, थायराइड आदि |
पवनमुक्तासन करने की विधि (How to do Pawanmuktasana in Hindi)
Step 1: भूमि पर बिछे हुए आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ। पूरक करके फेफड़ों में श्वास भर लें।
Step 2: अब किसी भी एक पैर को घुटने से मोड़ दें दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर मिलाकर उसके द्वारा मोड़े हुए घुटनों को पकड़कर पेट के साथ लगा दें।
Step 3: सिर को ऊपर उठाकर मोडे हुए घुटनों पर नाक लगाएं। दूसरा पैर ज़मीन पर सीधा रहे। इस क्रिया के दौरान श्वास को रोककर कुम्भक चालू रखें।
Step 4: सिर और मोड़ा हुआ पैर भूमि पर पूर्ववत् रखने के बाद ही रेचक करें।
Step 5: दोनों पैरों को बारी बारी से मोड़कर यह क्रिया करें। इसके बाद दोनों पैर एक साथ मोड़कर भी यह आसन करें।
समय (Time): इस आसन को सुबह-शाम 2-3 मिनट तक किया जा सकता हैं। और पढ़ें: मंडूकासन (Frog Pose)
पवनमुक्तासन से लाभ (Benefits of Pawanmuktasana in Hindi)
प्रभाव: पाचन तंत्र, सीना, फेफड़े, जोड़ों के दर्द, विसर्जन तंत्र, पैंक्रियाज, गोनाड्स, एड्रीनल, थायमस, थायराइड आदि ग्रंथियाँ पवनमुक्तासन से प्रभावित होती हैं।
यह उदरीय मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाता है तथा जाँघों, नितंबों तथा पेट (Abdominal area) की चर्बी को कम करने में सहायता करता है। इस आसन के नियमित अभ्यास से पेट की वायु नष्ट होकर पेट विकार रहित बनता है। जिसके पेट की वायु बिगड़ी व अधिक पैदा होती हो उसको यह आसन अवश्य करना चाहिए।
इस आसन के नियमित अभ्यास से कब्ज से छुटकारा मिलता है। इस आसन से स्मरणशक्ति भी बढ़ती है। और पढ़ें: शशांकासन (Rabbit Pose)
पवनमुक्तासन के दौरान सावधानियाँ (Precautions and contraindications of pawanmuktasana)
अगर किसी की गर्दन और मेरुदंड में कोई तकलीफ हो तो वे पवनमुक्तासन न करें। गर्भवती महिला और पेट के गंभीर रोग से ग्रसित व्यक्ति भी इस आसन को न करें।
पवनमुक्तासन करते समय जमीन पर मोटा मुलायम आसन / कंबल बिछाना आवश्यक है। अन्यथा मेरुदंड के मनकों (कशेरुकाओं) पर रगड़ द्वारा नुकसान पहुंच सकता है। और पढ़ें: पश्चिमोत्तानासन (Seated Forward Bend Pose)