शीर्षासन (Headstand Pose)
यह आसन सिर के बल किया जाता है इसलिए इसे ‘शीर्षासन’ (shirshasana) कहा जाता हैं। अंग्रजी में इसे Headstand Pose कहते हैं। प्राचीन ग्रन्थों से जिस विपरीतकर्णी मुद्रा को बहुत महत्त्व दिया गया है उसकी क्रियाओं से यह निश्चय होता है कि यह आसन ही विपरीतकर्णी है व इसे ही कपालासन भी कहते हैं।
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शीर्षासन करने की विधि (Headstand for Beginners: Step by step Guide)
Headstand for Beginners: इस आसन के करते समय आसन बहुत ही गुदगुदा होना चाहिए। ताकि मस्तिष्क पर आसन कड़े होने से हानिकारक प्रभाव न पड़ सकें।
आरम्भ में घुटने आसन पर टेक कर बैठ जाइए फिर दोनों हाथों की उँगलियाँ एक दूसरे में फंसाकर दोनों हाथ कुहनियों तक आसन पर घुटनों के सामने जमाकर रखिए अब अपना सिर दोनों फंसी हुई हथेलियों पर रखकर दोनों पैरों को धीरे धीरे ऊपर उठाने का प्रयत्न करिए।
हाथ केवल सिर को इधर-उधर से सहारा देकर शरीर को संभालने के लिए रखे जाते हैं। शरीर का भार इन पर न रहकर सिर पर ही रहना चाहिए। जब पैर कमर तक पहुँच जावें तब पैरों को घुटने से पीछे की तरफ मोड़े रहिए। इस तरह जब शरीर सध जाय तब फिर पैरों को ऊपर धीरे-धीरे सीधे फैला दीजिए।
जब शरीर बिलकुल सीधा हो जाय तब आसन पूर्ण हुई समझना चाहिए। इस समय अपनी दृष्टि भृकुटी के बीच में या नासिका के अग्रभाग पर जमाकर ध्यान करना चाहिए। घुटने, पंजे व एड़ियाँ आपस में मिली रहें व शरीर हिले-डुले नही, आँखे खूब खुली रहें, साँस
धीरे-धीरे नाक से लेवें और मुँह बन्द रखें। आरम्भ में किसी आदमी या दीवाल के सहारे पैर उठाए जा सकते हैं। अभ्यास करने के दस मिनिट बाद एक प्याला दूध व हलका जलपान व दूध पीना अत्यन्त आवश्यक है। गर्मी के दिनों में अधिक समय न करें। इस आसन को बहुत ही सावधानी व धीरे से करना चाहिए ताकि गर्दन में झटका न लगने पावे और खाली पेट करें।
समय मिलने पर प्रातः व सायंकाल दोनों समय की जा सकती है। आसन करके हाथों को ऊपर उठावे व गर्दन पीछे झुकावे तथा आगे झुककर समाप्त करने पर कुछ समय तक सीधे खड़े होकर दोनों हाथों से दोनों पैरों के अँगूठे पकड़े। यह क्रिया पाँच बार करें। साथ ही पाँच पूरक रेचक प्राणायाम पहले व बाद में करने से विशेष लाभ होगा।
इसके और भी कई प्रकार हैं। हाथों पर जोर देकर सिर भी उठाया जा सकता है। हाथों की उँगलियाँ खोल कर पंजे फैलाकर हथेलियों के सहारे बाहुओं के बल शरीर को ज्यों का त्यों खड़ा रखा जा सकता है। इसके सिवाय हाथों को हटाकर केवल सिर के बल ही खड़ा हुआ जाता है।
सर से हाथ हटाकर सामने इधर-उधर फैलाए, छाती लगा के व पैर मोड़कर नितम्बों से बारी-बारी से व साथ-साथ लगाए जा सकते हैं तथा पद्मासन भी लगाया जा सकता है और पैरों को ऊपर न अगल-बगल व आगे-पीछे फैलाया जा सकता है। चंचल चित्त वालों को इसमें आनन्द आता है, परन्तु ध्यान के विचार से पहली विधि ही उत्तम है।
आरम्भ में दीवाल या किसी मनुष्य का सहारा लेकर व बड़ी सावधानी से करें क्योंकि जल्दबाजी व इधर-उधर झोंका खाने या गिरने से सिर, गर्दन अथवा अन्य अङ्गों में चोट या मोच आ जाने का भय रहता है।
शीर्षासन से लाभ (Benefits of Headstand)
कितने ही ऋषि, मुनि, योग तथा आसन के अभ्यासी लोगों ने इस आसन की बड़ी प्रशंसा की है और इसे बहुत ही महत्व पूर्ण व तत्काल फल देने वाला बतलाया है। इसीलिए इसका अधिक प्रचार है।
घेरंड संहिता में इस आसन को मृत्यु और बुढ़ापे से रक्षा करने वाला बतलाया है। मानव शरीर में ऊपर के अङ्ग बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। सब का राजा वीर्य हृदय में रहता है। रक्त शरीर की कार्तिवान् जीवन प्रद और स्वस्थ रखने में समर्थ है अतएव उसे सारे शरीर में प्रवाहित व शुद्ध रखने की कितनी आवश्यकता है। साधारणतः शरीर का भार पैरो पर रहने के कारण रक्त का प्रवाह भी उसी तरफ़ रहता है अतएव सारे शरीर का रक्त पूर्ण रूप से प्रवाहित करने की पूर्ति इस आसन से हो जाती है।
मस्तिष्क में शुद्ध रक्त पहुँचने से बुद्धि तीव्र व स्मरण शक्ति बढ़ती है। वीर्य की ऊर्ध्वगति होने से मनुष्य कांतिवान् हो जाता है। वीर्यदोष व स्वप्नदोष नष्ट होकर उसका स्तंभन होता है। असमय में सफेद होने वाले बाल एक वर्ष के निरंतर अभ्यास से काले हो जाते हैं। पेट के विकार दृष्टि दोष दूर होते हैं। शरीर में रक्त पहुँचाने का कार्य हृदय करता है। अतएव ऊपर के अङ्गों में रक्त पहुँचाने में उसे बड़ा परिश्रम करना पड़ता है।
इस आसन में हृदय को विश्राम मिलने से वह अधिक दिनों तक कार्य करने में समर्थ होता है। फलत: मनुष्य की आयु बढ़ती है। सारे शरीर में वेग से शुद्ध रक्त का संचार होने से शरीर बलवान्, छाती, गले, सिर, पैर पेट व मुँह आदि के सब रोग, झुर्रियाँ आदि दूर होते हैं व आनन्द का अनुभव होता है। दिमागी काम करने वालों के लिए यह बहुत ही लाभप्रद है। इसके अभ्यास से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
इस आसन के बाद बैठकर ध्यान लगाने से बड़ा लाभ होता है। अनाहत शब्द स्पष्ट सुनाई देने लगते हैं। इस आसन से बहरापन, सुजाक, बहुमूत्र, अर्श, श्वास, यक्ष्मा, बवासीर आदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट होते हैं। सारांश यह कि यह समस्त रोगों की रामबाण दवा व अमृत है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है।
स्त्रियों के लिए यह आसन बहुत ही हितकारी व आशाप्रद है। इससे गर्भाशय व जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग दूर होकर बाँझपन गायब हो जाता है। मासिक धर्म व गर्भ के स्थित होने पर आसन नहीं करना चाहिए।
शीर्सषासन करने का सही समय (Best time to do Headstand Pose)
आरम्भ में इस आसन को पन्द्रह-बीस सेकिण्ड करें। प्रति सप्ताह एक-दो मिनट बढ़ाते हुए 5-10 मिनट तक कर सकते है। संध्या समय चार बजे से छः बजे के बीच या भोजन के दो घंटे पहले करें।
शीर्षासन की सावधानियां (Headstand yoga precautions)
यदि आप पूर्णत: स्वस्थ नहीं है तो इस आसन के अभ्यास से पूर्व किसी योग शिक्षक से परामर्श अवश्य करें। जिस व्यक्ति ब्लड प्रेशर, आंखों और गर्दन में कोई समस्या हो तो भी इस आसन को न करें।