सर्वांगासन (Shoulder Stand Posture)
इस आसन से पूरे शरीर के सभी अंगों को लाभ मिलता है। इसीलिए इस आसन का नामकरण ‘सर्वांगासन’ किया गया है। अन्य मत से भूमि पर सोकर शरीर को ऊपर उठाया जाता है इसलिए इसको सर्वांगासन कहते हैं।
सर्वांगासन करने की विधि (Sarvangasana Step by Step Guide)
सर्वप्रथम पांवों को मिलाकर हाथों को दोनों ओर से बग़ल के साथ सटाकर व हथेलियों को ज़मीन की ओर मोड़कर पीठ के बल सीधे लेट जायें।
अब श्वास को भीतर खींचते हुए। दोनों हाथों से कमर को आधार देकर गर्दन और कन्धे के बल पूरा शरीर ऊपर की ओर उठा लें। हाथ की कुहनियों भूमि से लगे रहें। ठोड़ी छाती के साथ चिपक जाए। दोनों पैर आकाश की ओर रहे।
दृष्टि या तो पांव के अंगूठे पर टिकी रहे अथवा आंखें बन्द कर लें। यथासंभव इस स्थिति में रहने का प्रयास करें। अब हथेलियों को धरती पर टिकाते हुए धीरे-धीरे दोनों हाथों को कमर से हटाकर ज़मीन पर सीधा लायें।
Sarvangasana time & duration: प्रारम्भ में 1-2 मिनट तक यह आसन करें। अभ्यास 5 मिनट तक बढाया जा सकता हैं।
विशेष: सर्वांगासन करने के बाद शवासन अवश्य करें।
सर्वांग आसन के लाभ (Benefits of Shoulder Stand Posture)
सर्वांग आसन से मन्दाग्नि, अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, थोड़े दिनों का अपेन्डीसाइटिस और साधारण गाँठ, असमय आया हुआ वृद्धत्व, दमा, कफ, चमड़ी के रोग, रक्तदोष, स्त्रियों को मासिक धर्म की अनियमितता एवं दर्द मासिक न आना अथवा अधिक आना इत्यादि रोगों में इस आसन से लाभ होता है।
सर्वांगासन के नित्य अभ्यास से जठराग्नि तेज होती है। लिवर और प्लीहा के रोग दूर होते हैं। इसके अभ्यास से शरीर की त्वचा नहीं लटकती तथा शरीर में झुर्रियों नहीं पड़तीं। इससे तीनों दोषों का शमन होता है।
थायराइड के रोगी को इस आसन से अदभुत लाभ होता है। इस आसन से थायराइड ग्रन्थि में रक्तसंचार तीव्र गति से होने लगता है जिससे थायरॉइड सक्रिय और स्वस्थ बना रहता है।
इस आसान को करने से मेधाशक्ति बढ़ती है। मानसिक बौद्धिक प्रवृति करने वालों को तथा विशेषकर विद्यार्थियों को यह आसन अवश्य करना चाहिए।
मुख पर से मुँहासे एवं अन्य दाग दूर होकर मुख तेजस्वी बनता है। जठर एवं नीचे उतरी हुई आँते अपने मूल स्थान पर स्थिर होती हैं।वीर्य की ऊर्ध्वगति होकर अन्तःकरण शुद्ध होता है। मेधाशक्ति बढ़ती है, चिर यौवन की प्राप्ति होती है।
सर्वांगासन के अभ्यास से मोटापा, दुर्बलता और थकान दूर होता हैं। इस आसन के अभ्यास से कन्धे स्थिर होते हैं तथा श्वास भी उदर तक पहुंचता है, इसलिए दमा के प्रारम्भिक अवस्थाओं में इस आसन को उपयोगी माना गया है।
सर्वांग आसन से हानि (Side Effects of Sarvangasana)
शीर्षासन करने से जो लाभ होता है वे सब लाभ सर्वांगासन और पादपश्चिमोतानसन करने से मिल जाते हैं। लेकिन शीर्षासन में गफलत होने से जो हानि होती है वैसी हानि होने की संभावना सर्वांगासन और पादपश्चिमोत्तानासन में नहीं है।
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