Ayurveda Story: अश्विनी कुमार द्वारा च्यवन ऋषि को वृद्ध से युवा बनाना
आयुर्वेदिक औषधियों में यदि कोई सर्वाधिक विक्री वाला उत्पाद है तो वह है च्यवनप्राश (Chyawanprash)। आपने भी च्यवनप्राश का नाम अवश्य सुना ही होगा, लेकिन इसका नाम च्यवनप्राश कैसे पढ़ा? इसके पीछे बड़ी ही रोचक कहानी है। जिसके बारे में आज हम जानेंगे।
च्यवन ऋषि की कथा | Story of Chyavan Rishi
च्यवन ऋषि, महर्षि भृगु के पुत्र थे। च्यवन जन्म से ही तेजस्वी और तपस्या प्रेमी थे। एक बार उन्होंने नर्मदा नदीके तट पर तपस्या आरम्भ कर दी। तप करते-करते उन्हें हजारों वर्ष व्यतीत हो गये। यहाँ तक कि उनके शरीर में दीमक-मिट्टी चढ़ गई और लता-पत्तों ने उनके शरीर को ढँक लिया।
उन दिनों अपनी प्रजा का पालन करने में तत्पर राजा शर्याति इस सरोवर के तट पर अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ आये। राजा शर्याति सब सुख से संपन्न होने के बावजूद संतान के नाम पर उनकी केवल एक सुन्दर पुत्री थी, जिसका नाम था सुकन्या।
सुकन्या को वह वनस्थली बहुत भायी। वह सखियोंके साथ वनमें इधर उधर घूमने लगी। घूमते-घामते वह च्यवन की उस बाँबी के पास जा पहुंची। चहलकदमी से च्यवन ऋषि का ध्यान टूट गया किंतु वह कमजोरी के चलने कुछ बोल न सकें।
उसने दीमक-मिट्टी के टीले में चमकती हुई दो चीजें देखी, तब उसे बहुत कौतूहल हुआ। इतना कौतूहल हुआ कि उस रहस्य को जाननेके लिये उन्हें काँटे से बेध दिया। आँखें बींध जाने से ऋषि च्यवन क्रोध से लाल हो गये और उन्होंने शर्यातिकी सेना के मल मूत्र बंद कर दिये।
राजा शर्यातिकी सेना अनुशासित थी, किंतु मल मूत्रावरोध से वह छटपटाने लगी। जो जहाँ था वह वहीं कराहने लगा। राजा समझ गये कि यहाँ जो च्यवन ऋषि तप कर रहे हैं, उनकी हमारी ओर से अवश्य ही अवज्ञा गयी है। उन्होंने सबसे पूछा- यहाँ च्यवन ऋषि तपस्या कर रहे हैं, उनका किसी ने अपराध तो नहीं किया? शीघ्र बता दें।
सुकन्या ने आप बीती सुना दी। यह सुनकर शर्याति शीघ्र ही बाँबी के पास गये, और उनसे अपने सैनिकों का कष्ट निवारण करनेके लिये प्रार्थना की। उन्होंने कहा– ‘मेरी पुत्रीसे अज्ञानवश अपराध हो गया है, आप उसके अपराध को क्षमा करें।
वृद्ध ऋषि ने कहा- ‘मैं इस अपराध को तभी क्षमा कर सकता हूँ, जब तुम्हारी कन्या मुझे पति रूप में स्वीकार करें। राजा को अपनी महान् हृदय वाली पुत्री पर विश्वास था कि वह प्रजा के हित के लिये अपना बलिदान स्वीकार कर लेगी। उन्होंने महात्मा च्यवन को अपनी पुत्री दे दी। च्यवन मुनि के प्रसन्न होते ही सभी संकट टल गये खुशी-खुशी लोग राजधानी लौट आये। सुकन्या प्रेम पूर्वक पति की सेवा करने लगी।
उन्हीं दिनों अश्विनीकुमार (देवताओं के वैद्य) पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे। संयोग से वे च्यवन के आश्रम की ओर से कहीं जा रहे थे। उस समय सुकन्या स्नान करके अपने आश्रम की ओर लौट रही थी। उसे देखकर अश्विनी कुमारों को बहुत विस्मय हुआ। उन्होंने उससे पूछा- ‘तुम किसकी पुत्री और किसकी पत्नी हो?’ सुकन्या ने अपने पिता और पति का नाम बताया, फिर अपना नाम भी बता दिया।
अश्विनी कुमारों ने परीक्षा की दृष्टि से कहा – ‘सुकन्ये! तुम अप्रतिम रूपवती हो, तुम्हारी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में उस वृद्ध पति की उपासना कैसे करती हो, जो काम भोग से शून्य है? अतः च्यवन को छोड़कर हम दोनों में से किसी एक को अपना पति चुन लो ।’
सुकन्या ने नम्रता से कहा- ‘महानुभावो! आप मेरे विषय में अनुचित आशंका न करें, मैं अपने पति में पूर्ण अनुराग रखती हूँ। प्रेम आदान नहीं, प्रदान चाहता है। पति का सुख ही मेरा सुख है।’
सुकन्या परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुकी थी। दोनों देव वैद्यों को इससे बहुत संतोष हुआ। वे बोले– ‘हम दोनों देवताओं के श्रेष्ठ वैद्य हैं- ‘हम तुम्हारे पति को हम अपने-जैसा तरुण और सुन्दर बना देंगे, उस स्थिति में तुम हम तीनों में से किसी एक को अपना पति बना लेना। यदि यह शर्त तुझे स्वीकार हो तो तुम अपने पति को बुला लो।’
सुकन्याने जब च्यवन से इस घटना को सुनाया तो सुन्दरता और यौवन पाने के लिये वे ललचा उठे। वे अश्विनी कुमारोंके अद्भुत चमत्कार से अवगत थे, अतः सुकन्या के साथ वे अश्विनीकुमारों के पास पहुँचे।
अश्विनी कुमारों ने पहले तो च्यवन ऋषि को जल में उतारा। थोड़ी देर बाद वे स्वयं भी उसी जल में प्रवेश कर गये। एक मुहूर्त तक जल के अंदर अश्विनी कुमारों ने च्यवन की चिकित्सा की। इसके बाद वे तीनों जब जल से बाहर निकले तीनों का रूप-रंग एवं अवस्था एक ही जैसी थी। उन तीनों ने सुकन्या से एक साथ ही कहा – ‘हम तीनों में से किसी एक को अपनी रुचिके अनुसार अपना पति बना लो।’
प्रारम्भ में तो सुकन्या ठगी-सी खड़ी रह गयी। उन तीनों मे से उसका पति कौन है, वह समझ नहीं पाती थी। अन्त में उसके पातिव्रत्य धर्म ने उसका साथ दिया। वह पतिको पहचान गयी और उसने च्यवन को पति के रूपमें चुन लिया। सुकन्या इस बार भी परीक्षा में खरी उतरी। च्यवन मुनि ने तरुण अवस्था, मनोवाञ्छित रूप और पतिव्रता पत्नी को पाकर बहुत ही हर्ष का अनुभव
सआभार- कलयाण अंक