Thalassemia: थैलेसीमिया के लक्षण, कारण और उपचार
Thalassemia: थैलेसीमिया रक्त से संबंधित एक आनुवंशिक बीमारी है। जो माता पिता के जरिए बच्चों में फैलती है। यदि समय पर सावधानी न बरती जाए या उपचार न कराया जाए, तो यह गंभीर रूप धारण कर सकती है। आइए जानते हैं थैलेसीमिया के कारण, लक्षण और उपचार-
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थैलेसीमिया क्या है? | What is Thalassemia in Hindi
थैलेसीमिया (Thalassemia) रक्त से संबंधित ऐसी आनुवंशिक बीमारी है, जो रक्त कोशिकाओं के कमजोर होने और नष्ट होने के कारण होती है। यह वैरिएंट या किसी जीन की अनुपस्थिति के कारण भी होती है, जो हीमोग्लोबिन प्रोटीन के निर्माण को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। हीमोग्लोबिन प्रोटीन एक ऐसी जरूरी चीज है, जो लाल रक्त कोशिकाओं को ऑक्सीजन ले जाने में मदद करती है।
रक्त से संबंधित इस आनुवंशिक बीमारी का रोगियों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। जैसे उनमें आयरन का स्तर बढ़ जाता है, हड्डियों में विकृति आ जाती है और गंभीर मामलों में हृदय रोग भी हो सकते हैं।
World Thalassemia Day: प्रति वर्ष 8 मई को वर्ल्ड थैलेसिमाय डे मनाया जाता है। इस डे को मनाने का लक्ष्य रक्त संबंधित गंभीर बीमारी थैलेसीमिया के प्रति जागरुक करना। दरअसल, यह एक जेनेटिक बीमारी है जो बच्चों को उनके माता-पिता से मिलती है।
थैलेसीमिया के प्रकार | Types of Thalassemia in Hindi
सामान्य हीमोग्लोबिन में दो श्रृंखलाएं होती हैं और प्रत्येक श्रृंखला में अल्फा और बीटा ग्लोबिन होती है। लेकिन थैलेसीमिया के मरीज में अल्फा या बीटा ग्लोबिन की कमी होती है। हीमोग्लोबिन अणु की कौन-सी श्रृंखला प्रभावित है, उसी के आधार पर थैलेसीमिया को वर्गीकृत किया जाता है। मुख्यतः थैलेसीमिया के दो प्रकार (थैलेसीमिया मेजर, थैलेसीमिया माइनर) हैं-
थैलेसीमिया मेजर
जब पति-पत्नी दोषपूर्ण जीनों के वाहक हों और जब वे संतान पैदा करते हैं, तो उनके चार में से एक बच्चे में उनके वाहक जीन आने की आशंका हो सकती है और वह बच्चा बीटा थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित हो सकता है।
थैलेसीमिया माइनर
थैलेसीमिया माइनर तब होता है, जब मरीज माता-पिता में से केवल एक से दोषपूर्ण जीन प्राप्त करता है। अल्फा और बीटा थैलेसीमिया के माइनर रूप वाले लोगों में लाल रक्त कोशिकाएं छोटी होती हैं।
हैड्रोप फीटस
यह एक दुर्लभ और बेहद खतरनाक थैलेसीमिया का प्रकार है जिसमे गर्भ के अंदर ही या पैदा होने के कुछ समय बाद ही बच्चा मर जाता हैं।
थैलासीमिया के लक्षण | Thalassemia Symptoms in Hindi
- थैलेसीमिया माइनर: इसमें अधिकतर मामलों में कोई लक्षण नजर नहीं आता हैं। कुछ रोगियों में रक्त की कमी या एनीमिया हो सकता हैं।
- थैलेसीमिया मेजर : जन्म के 3 महीने बाद कभी भी इस बीमारी के लक्षण नजर आ सकते हैं।
- बच्चों के नाख़ून, जीभ पिली पड़ जाना।
- हड्डियों से जुड़ी विकृति जो खासकर जबड़ों और गालों में असामान्यता।
- बच्चे के विकास में बाधा आना, सूखता चेहरा, कमजोरी, वजन न बढ़ना।
- सांस लेने में तकलीफ।
थैलासीमिया का डायग्नोसिस | Diagnosis of Thalassemia in Hindi
डॉक्टर थैलासीमिया को डायग्नोज करने के लिए आमतौर पर मरीज का ब्लड सैंपल जांच करवाते हैं जिसमें एनीमिया और असामान्य हीमोग्लोबिन की जांच की जाती है। साथ ही लैब टेक्नीशियन माइक्रोस्कोप के जरिए यह भी देखने की कोशिश करते हैं कि लाल रक्त कोशिकाओं का आकार असामान्य है या नहीं। लाल रक्त कोशिकाओं का असामान्य आकार भी थैलासीमिया का एक संकेत है।
अगर थैलेसीमिया की पुष्टि हो जाए- एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर वर्ष 7 से 10 हजार बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित पैदा होते हैं। यदि आपको या आपके साथी को थैलेसीमिया की पुष्टि हो जाती है , तो अपने डॉक्टर से बात करें। इससे आपको अपने बच्चों में यह बीमारी होने की आशंका को समझने में मदद मिलेगी और आप प्रसवपूर्व परीक्षण कराकर इस बीमारी से मुक्त बच्चे पैदा कर सकेंगे।
थैलेसीमिया का इलाज | Treatment of Thalassemia in Hindi
पिछले कुछ सालों में थैलेसीमिया के इलाज में काफी सुधार हुआ है। थैलेसीमिया मेजर के रोगियों के इलाज में क्रोनिक ब्लड ट्रांसफ्यूजन थेरेपी, आयरन कीलेशन थेरेपी आदि शामिल हैं। इसमें कुछ ट्रांसफ्यूजन भी शामिल होते हैं, जो मरीज को स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की अस्थायी रूप से आपूर्ति करने के लिए आवश्यक होते हैं, ताकि उनमें हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य हो सके और रोगी के शरीर के लिए जरूरी एं ऑक्सीजन पहुंचाने में सक्षम हो।
थेलेसीमिया से बचाव एवं सावधानी | Prevention and Precautions for Thalassemia
थेलेसीमिया पीडि़त के इलाज में काफी बाहरी रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते, जिससे 12 से 15 वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्य हो जाती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है।
रक्त चढ़ाने वाले लोगों को किसी भी प्रकार का आयरन सप्लिमेंट लेने से बचना चाहिए। ऐसा करने से शरीर में अधिक मात्रा में आयरन का निर्माण हो सकता है, जो हानिकारक हो सकता है। अधिक रक्त चढ़ाने वाले रोगियों में अतिरिक्त आयरन को हटाने में मदद करने के लिए आयरन कीलेशन थेरेपी कराने की आवश्यकता हो सकती है।
थैलेसीमिया का इलाज इस बीमारी के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। थैलेसीमिया के लक्षण वाले किसी अन्य व्यक्ति से शादी करते हैं, तो उनसे होने वाले बच्चे के थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित होने का जोखिम होता है।
- विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जाँच कराएँ।
- गर्भावस्था के दौरान जाँच कराएँ।
- रोगी की हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें।
- समय पर दवाइयाँ लें और इलाज पूरा लें।