सिद्धासन (Adept Pose)
पद्मासन के बाद सिद्धासन का स्थान आता है। अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त करने वाला होने के कारण इसका नाम ‘सिद्धासन’ पड़ा है। अंग्रेजी में इसे Adept Pose या Accomplished Pose कहते हैं।
सिद्ध योगियों का यह प्रिय आसन है। यम में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है नियमों में शौच श्रेष्ठ है वैसे आसनों में सिद्धासन श्रेष्ठ है।
सिद्धासन जैसा दूसरा आसन नहीं है, केवली कुम्भक के समान प्राणायाम नहीं है, खेचरी मुद्रा के समान अन्य मुद्रा नहीं है और अनाहत नाद जैसा कोई नाद नहीं है।
सिद्धासन करने की विधि (How to do Siddhasana in Hindi)
सिद्धासन सुखासन से कुछ भिन्न है। सुखासन में एक पांव को दूसरे पांव के टखने पर रखा जाता है, लेकिन सिद्धासन में एक पांव को दूसरे पांव की पिंडली पर रखा जाता है।
Step 1: सर्वप्रथम योग आसन पर दोनों पैर फैलाकर बैठ जाइए।
Step 2: अब बाएँ पैर को मोड़कर उसकी एडी गुदा और जननेन्द्रिय के बीच रखे। तलुआ जाँघ से लगा रहे।
Step 3: अब दाहिने पैर को मोड़कर उसकी एड़ी लिंग के बिल्कुल ऊपर हड्डी पर अच्छी तरह जमा दीजिए। तलुआ दूसरे पैर की जाँच से सटा रहे।
Step 4: हाथ एक दूसरे के ऊपर गोद में रखें। अथवा दोनों हाथों को दोनों घुटनों के ऊपर ज्ञानमुद्रा में रखें।
Step 5: अब आंखे बंद करके 5 मिनट तक आज्ञाचक्र में ध्यान केन्दित करें। श्वासोच्छोवास स्वाभाविक रूप से चलने दें।
आसन करने का समय (Best time to do Siddhasana in Hindi)
इस आसन का 2-3 मिनिट से आरम्भ करके धीरे धीरे अभ्यास बढ़ाना चाहिए। साधरण गृहस्थ 10-15 मिनट तक इस आसन को कर सकते है। प्रातः और सायंकाल दोनों समय इस आसन का अभ्यास किया जा सकता है।
सिद्धासन से लाभ (Benefits of Siddhasana in Hindi)
सिद्धासन के अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है। पाचनक्रिया नियमित होती है। खांसी, श्वास, जुकाम, हृदय रोग, श्वास के रोग, जीर्णज्वर, अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष, बहुमूत्र, मूत्रकृच्छू, आदि दूर होते हैं।
मंदाग्नि, संग्रहणी, वातविकार, क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों का प्रशमन होता है। पद्मासन के अभ्यास से जो रोग दूर होते हैं वे सिद्धासन के अभ्यास से भी दूर होते हैं।
विद्यार्थियों के लिए भी यह आसन विशेष लाभदायक है। जठराग्नि तेज होती है। दिमाग स्थिर बनता है जिससे स्मरणशक्ति बढ़ती है।
कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए यह आसन प्रथम सोपान है। योगीजन सिद्धासन के अभ्यास से वीर्य की रक्षा करके प्राणायाम के द्वारा उसको मस्तिष्क की ओर ले जाते हैं जिससे वीर्य ओज तथा मेधाशक्ति में परिणत होकर दिव्यता का अनुभव करता है। मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
सावधानी: इस आसन को सरल न समझना चाहिए और न इसके करने में जल्दी ही करनी चाहिए अन्यथा लाभ के बदले हानि होने की सम्भावना है। गर्भवती महिला इस आसन को न करें।