पत्थरचट्टा (Kalanchoe Pinnata)
पत्थरचटा या पाषाणभेदक एक सपुष्पक पादप है जो भारत केलगभग सभी राज्यों में पाया जाता है। आयुर्वेद मतानुसार साधारण सा दिखने वाला यह पौधा पथरी तथा अन्य रोगों में बेहद उपयोगी है। इसलिए आजके इस लेख में हम आपको बता रहे है, पत्थर चट्टा के औषधीय गुण और प्रयोग…
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पत्थरचट्टा का विभिन्न भाषाओं में नाम (Pashanabheda / Patharchatta Name in different Language)
वैज्ञानिक नाम | Kalanchoe pinnata, Bryophyllum calycinum, Bryophyllum pinnatum |
अंग्रेज़ी | इंडियन रॉकफोइल (Indian Rockfoil) सेक्सीप्रैंज (Saxifrage), स्टोन ब्रेकिंग (Stone breking) |
हिंदी | पत्थरचटा, पथरचूर, पाषानभेद |
संस्कृत | पाषाणभेद, अश्मभेद, गिरिभेद, अश्मघ्न, पाषाणभेदक |
बंगाली | हिमसागर (Himasagara), पाठाकुचा (Pathakucha), पत्थरचुरी (Patharchuri) |
गुजराती | पाषाणभेद (Pashanabheda) |
मराठी | पाषाणभेद (Pashanbheda) |
कन्नड़ | एलेलगया (Alelgaya), पाषाणभेदी (Pashanabhedi) |
नेपाली | सोहेप सोआ (Sohap soa), सिलपरो (Silparo) |
ओडिया | कानाभिण्डि (Kanabhindi), पेठे (Pethe) |
तेलगू | तेलनुरूपिण्डि (Telanurupindi) |
तमिल | वट्टीत्रीउप्पी (Vattitriuppi) |
पत्थरचट्टा वृक्ष का सामान्य परिचय (Introduction of Patharchatta in Hindi)
विश्व स्तर पर पथरचटा एशिया के समशीतोष्ण क्षेत्रों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज, मकारोनेसिया, मस्कारेनेस, गैलापागोस, मेलानेशिया, पोलीनेशिया और हवाई में पाया जाता है। हवाई जैसे क्षेत्रों में इसे आक्रामक प्रजाति के पौधों के रूप में भी जाना जाता है। यह पौधा फ़िलिपींस में भी पाया जाता है लेकिन सर्वाधिक अच्छे गुण का पत्थर चट्टा हिमालय क्षेत्र का मन जाता है
पत्थरचटा का पौधा सारे भारत में पाया जाता है। इसके पत्ते मांसल, अंडाकार, 5-6 इंच व्यास के किनारों पर दंत युक्त, ऊपरी सतह पर हरे रंग के और निचली सतह पर मटमैले, लाल आभा लिए होते हैं। छोटे-छोटे पुष्प सफेद, गुलाबी या बैंगनी रंग के अप्रैल-मई महीने में लगते हैं। फल छोटे, नीली आभा लिए व सफेद रंग के होते हैं। पत्थरचटा की जड़ लाल रंग की, मोटी व 1-2 इंच लंबी होती है। इसके चारों ओर से अनेक छोटी-छोटी जड़ें निकलकर फैली होती हैं। जड़ के टुकड़े ही बिकते हैं।
बहेड़ा का आयुर्वेदिक और यूनानी गुणधर्म (Ayurvedic & Unani Properties of Patharchatta)
आयुर्वेदिक मतानुसार: पत्थरचटा रस में तिक्त, कषाय, गुण में लघु, स्निग्ध, तीक्ष्ण, तासीर में शीतल, विपाक में कटु, वात, पित्त और कफ़नाशक, शोथ हर और स्तम्भक होता है। यह पथरी, श्वेत प्रदर, मूत्रकृच्छ्र, मूत्राघात, खांसी, आमातिसार, फेफड़ों के विकार, रक्तस्राव, चोट, घाव, सूजन, प्रमेह, वातरक्त, पीलिया उन्माद, रक्त प्रदर, ज्वर, विषनाशक, उदरशूल में गुणकारी है। और पढ़ें: आयुर्वेदिक दवा सेवन करने का सही तरीका
यूनानी चिकित्सा: पद्धति में पत्थरचटा को दूसरे दर्जे का गर्म और रुक्ष माना जाता है। यह पथरी, शोथ, शुक्रमेह, पेट दर्द, पाण्डु की उत्तम औषधि है। वैज्ञानिक मतानुसार पत्थरचटा की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसकी जड़ में एल्ब्यूमिन73 प्रतिशत, ग्लूकोज़ 51 प्रतिशत, पिच्छिल द्रव्य 21 प्रतिशत, स्टॉर्च 19 प्रतिशत, टैनिक एसिड 14.2 प्रतिशत, खनिज लवण, गैलिक एसिड, मोम, भस्म सभी 12.87 प्रतिशत (जिसमें कैल्शियम आक्जलेट सबसे अधिक होता है), मॅमेटार्बिन और सुगंधित द्रव्य भी पाए जाते हैं। और पढ़ें: वैकल्पिक चिकित्साओ की सूचि
मात्रा: मूल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर।
उपलब्ध आयुर्वेदिक योग: पाषाण भेदादि क्वाथ, पाषाण भेदाद्य घृत, पाषाण भेदादि चूर्ण आदि।
पत्थरचटा के विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Pashanabheda / Patharchatta in various diseases in Hindi)
सूजन: पर पत्थरचटा के पत्तों को तवे पर गर्म कर सूजन पर बांधने से आराम मिलेगा। चोट, जख्म और रक्तस्राव में पत्थरचटा के पत्तों को पीसकर लुगदी बांधने से रक्तस्राव रुकेगा और घाव शीघ्र भरेगा। चोट ठीक होने तक इसका प्रयोग दोहराते रहें।
दंत रोग: दांत रोगों में पत्थरचटा की जड़, अजवायन और माजूफल सम भाग मिलाकर पीस लें। तैयार चूर्ण को एरण्ड के तेल में मिलाकर मसूड़ों और दांतों पर मलकर पांच मिनट बाद गुनगुने पानी से गरारे करने से समस्त दंत और मसूड़ों के रोगों में लाभ होता है।
दांत निकलने के कष्ट: पत्थरचटा के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर मसूड़ों पर रोजाना मलते रहने से बच्चों के दांत आसानी से निकल आते हैं और मुंह के छालों की तकलीफ भी नहीं होती। अतिसार, ज्वर की तकलीफ दूर होती है। रक्त प्रदर आंवला, नागकेसर और पत्थरचटा की जड़ का चूर्ण समभाग मिलाकर पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार शहद के साथ सेवन करने से लाभ होगा।
पेशाब में जलन: दूध की लस्सी के साथ पत्थरचटा की जड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में सेवन करने से जलन दूर होकर आराम मिलता है। पथरी पत्थरचटा के पत्ते, फूल, फल व जड़ सभी सम भाग मिलाकर एक गिलास पानी में पकाएं। जब आधा पानी रह जाए, तो इसको तीन मात्रा में विभाजित कर दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ हफ्ते सेवन से पथरी गल जाएगी।
पेट दर्द: 2-3 पत्तों को हलका नमक लगाकर सेवन कराएं या पत्तों के एक चम्मच रस में आधा चम्मच सोंठ का चूर्ण मिलाकर खिलाएं।
खांसी: पत्थरचटा के पत्तों और जड़ का समभाग चूर्ण मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार शहद के साथ चटाएं।
अतिसार: एक कप बकरी के दूध के साथ पत्थरचटा की जड़ के चूर्ण की एक चम्मच मात्रा दिन में 3 बार सेवन करने से अतिसार में लाभ होगा। रक्तपित्त पत्थरचटा की जड़ का चूर्ण, नागकेसर के चूर्ण में सम भाग मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में दूब के 2 चम्मच रस के साथ दिन में 3 बार दें।