Natural Urges: इन 13 वेगों को कभी न रोकें | धारणीय, अधारणीय वेग

Natural Urges in Hindi: हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शरीर के जरूरतों के अनुसार हर काम करना चाहिए। जैसे समय पर भोजन, पानी पीना, शोच-पेशाब आदि करना। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम अपने शरीर के प्राकृतिक वेगों को रोक कर रखे रहते हैं। जिसका खामियाजा हमें चुकाना पड़ता है।

इसलिए इन वेगों को कभी भी नहीं रोकना चाहिए। नहीं तो इसके विपरीत परिणाम होते हैं.

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इन 13 वेगों को कभी न रोकें | Never Suppress These 13 Natural Urges

आयुर्वेद अनुसार वेग दो प्रकार के होते है।

  1. धारणीय वेग (जिन्हें रोकना चाहिए)
  2. अधारणीय वेग (जिन्हें रोकना नही चाहिए)

अधारणीय वेग को भूलकर भी नही रोकना चाहिए वरना शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

(1) मूत्र वेग | Suppression of Urine

मूत्र-वेग को रोकना मनुष्य के लिए हानिकारक होता है क्योंकि यह वृक्क पर बड़ा दुष्प्रभाव डालकर उसकी किया पद्धति को विकृत कर भयंकर रोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकता है।

(2) मल-वेग | Suppression of Stool

मल-वेग को रोकने से मनुष्य में अनेकों रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे अजीर्ण, मन्दाग्नि, पेट आदि और यदि इस वेग को अधिक समय तक रोक लिया जाए, तो इसके और अधिक भयंकर परिणाम निकलते हैं, इससे हृदय तथा मस्तिष्क तक प्रभावित होकर रोगी को निराशाजनक स्थिति तक पहुंचा देते हैं ।

(3) अपान वायु | Suppression of Flatus

अपान वायु रोकने से पेट में वायु गोला का शूल, अफारा तथा अन्य प्रकार के उदर शूल उत्पन्न होते हैं। जब वायु ठीक प्रकार से खारिज नहीं हो पाती है, तो वह ऊपर की ओर चढ़ने लगती है और मनुष्य के हृदय तथा मस्तिष्क तक जाकर बेचैनी, घबराहट तथा मस्तिष्क शूल आदि उत्पन्न कर देती है। इसके अतिरिक्त मूत्रकृच्छ, कब्ज, नेत्र रोग, मन्दाग्नि व अजीर्ण आदि रोग भी उत्पन्न कर देती है।

(4) छींक वेग | Suppression of Tears

छींक का वेग मस्तिष्क संस्थान में विकार को दूर करता है, ऐसा आयुर्वेदाचार्यों का मानना है। अत: छींक के बैग को रोकने से अवश्य ही मस्तिष्क में कोई-न-कोई विकार उत्पन्न हो सकता है, जैसे मस्तिष्क शूल, समस्त इन्द्रियों में शिथिलता आदि ।

(5) डकार वेग | Suppression of Burping

डकार के विषय में आयुर्वेदाचार्यों का मानना है कि यह हृदय संस्थान से होकर आते हैं। अत: इसके रोकने से हृदय में विकार उत्पन्न होना अवश्यम्भावी है। सम्भव है कि उकार को रोकने के कारण हृदय की स्पन्दन गति कम होकर मनुष्य शिथिल हो जाए। इसलिए डकार के वेग को कभी नहीं रोकना चाहिए।

(6) निद्रा-वेग | Suppression of Sleep

निद्रा का अर्थ है ‘थकान को दूर करना’ । यदि मनुष्य अपनी थकान को सोकर दूर नहीं करेगा, तो उसे अनेकों कष्टों से जीवनयापन करना पड़ेगा और कोई भी मनुष्य यह नहीं चाहेगा कि उसकी थकान दूर न हो, इसलिए थकान, नेत्रों के रोग, मस्तिष्क रोग, हृदय रोग आदि से बचने के लिए निद्रा-वेग को कभी नहीं रोकना चाहिए।

(7) तृषा-वेग | Suppression of Thirst

तृषा यानि पानी की प्यास शरीर के समस्त वेगों से भयंकर वेग इस प्यास का ही होता है, क्योंकि वास्तव में यह वेग होता ही तब है, जब शरीर में जल की कमी होती है और यदि समय से अधिक इस वेग को रोका गया है, तो अति भयंकर परिणाम सामने आते हैं। जल प्राणी के लिए प्राण द्रव्य है, इसलिए यदि प्राण बचाने हैं, तो इस वेग को कभी न रोकना चाहिए।

(8) खाँसी | Suppression of Cough

खाँसी शरीर का एक स्वाभाविक वेग है, जो कि श्वास संस्थान से उठता है। वह किसी दोष-विकार की दशा में रोग रूप से उत्पन्न होता है और सामान्य दशा में कभी-कभी वेग रूप में ही स्वभावत: आता है, इसे भी रोकना नहीं चाहिए। क्योंकि फेफड़े श्वास वायु के जिस अनावश्यक या अनुपयुक्त भाग को स्वाभाविक रूप से बाहर निकालना चाहते हैं, उसे खाँसी वेग द्वारा निकाल देते हैं।

इस वेग को रोकने से श्वास रोग (फेफड़े कमजोर, दमा आदि), अरुचि, हिचकी तथा हृदय रोग भी हो जाता है, इसलिए इसे रोकना नहीं चाहिए।

(9) क्षुधा / भूख वेग | Suppression of Hunger

क्षुधा अर्थात् भूख के वेग को अधिक समय तक रोकना उचित नहीं है। यूँ तो आचार्यों ने उपवास आदि रखना पेट तथा मन की शुद्धि के लिए परम आवश्यक माना है। किन्तु यदि अनन्तकाल तक भूखा रहा जाए तो वजन घट जाना, दुर्बलता, मूर्च्छा, अरुचि हो जाना, नाना प्रकार के शूल उत्पन्न हो जाना, रक्त संचार और नाड़ी की गति में अनियमितता आदि का सामना करना पड़ सकता हैं।

(10) वमन वेग | Suppression of Vomiting

वमन-वेग अर्थात् उल्टी सर्वाधिक तीव्र वेग है, जिसके साथ मनुष्य के शरीर में उत्पन्न पित्त, कफ आदि की प्रबलता तथा विष आदि विकार बाहर निकल जाते हैं। इसको रोकना भी अत्यधिक हानिकारक है, हाँ आन्त्र शोध, विशुचिका (हैजा) आदि रोगों में चिकित्सक को इसे रोकने के उपाय करने चाहिए। किन्तु तब, जबकि शरीर में उत्पन्न विष आदि निकल जाए और उलटी अत्यधिक संख्या में हो।

इसे रोकने से पित्त उछलना, नेत्र रोग, दाद, साज आदि चर्म रोग, पाण्डु रोग (पीलिया), अनेक प्रकार के ज्वर, खांसी, श्वास (दमा), हृदय रोग आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। साथ ही पित विकार के कारण पाचन क्रिया की शिथिलता, अरुचि, मन्दाग्नि, अजीर्ण, खट्टी डकारें आदि रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं।

(11) जमुहाई | Suppression of Yawning

जमुहाई या उबासी भी शरीर का एक स्वाभाविक वेग है, जो कि थकान व निद्रागमन से पूर्व उठता है, इसे रोकने से शरीर में इन्द्रियों की शिथिलता व दुर्बलता, मस्तक पीड़ा और गर्दन व मुख का टेढ़ा हो जाना आदि अनिष्टकारी प्रभाव होते हैं, इसे रोकना नहीं चाहिए।

(12) अश्रु-वेग | Suppression of Tears

अश्रु-वेग में यद्यपि आँसों के मार्ग से पानी निकलता है किन्तु यह वेग मनुष्य के अहसाय दुःख की मनोदशा में उठता है, अत: इसका मनुष्य के हृदय व मस्तिष्क संस्थान से सीधा सम्बन्ध होता है और इसे रोकने से माइग्रेन, नेत्र रोग, गर्दन में पीड़ा, अरुचि, भ्रम तथा वायु गोला आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अश्रु वेग को रोके बिना स्वाभाविक रूप से बह जाने देने से मनुष्य का बड़े से बड़ा दुःस हल्का हो जाता है और हृदय को शांति प्राप्त होती है।

(13) उच्छ्वास रोकने से उत्पन्न रोग | Suppression of Hyper Breathing

उच्छ्वास, दीर्घ श्वास, आह आदि मनुष्य की हार्दिक अनुभूतियों अथवा मानसिक आघातों की प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न होते हैं, अस्तु इन्हें अस्वाभाविक रूप से रोकना हानिकारक है। इसे रोकने से हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, वायुगोला, प्रमेह तथा श्वास सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

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