Naval Displacement: नाभि खिसकने (धरण) के लक्षण, कारण और उपचार
Naval Displacement: नाभि खिसकने की समस्या ऐसी है जो बेइंतहा परेशान कर देती है। इसमे पेट दर्द, दस्त और उल्टियां तक हो सकती हैं। आज हम आपको नाभि खिसकना क्या है, नाभि खिसकने के कारण, लक्षण और उपचार बताएंगे।
नाभि (धरण) खिसकने की समस्या के बारे में आपने सुना ही होगा। कई लोग इसको नाभि उतरना, नाभि डिगना या धरण गिरना के नाम से भी जानते हैं। नाभि खिसकने पर अक्सर पीड़ित व्यक्ति को पेट में दर्द या दस्त की समस्या का सामना करना पड़ता है।
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नाभि खिसकना का उल्लेख आमतौर पर आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धति में मिलता है। आयुर्वेद अनुसार नाभि आरोग्य का मूलाधार है। यह शरीर में कार्यरत विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं का केन्द्र है। नाभि उठते-बैठते, दौड़ते-चलते सोते अथवा किसी भी स्थिति में शरीर के अंगों-उपांगों को अपने स्थान पर स्थिर रखती है। नाभि का पाचन से भी सम्बंध है इसलिए नाभि के खिसकने से पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली में बाधा उत्पन्न होने लगती है।
मॉडर्न मेडिकल साइंस (एलोपैथी) नाभि खिसकने पर विश्वास नही करता, इसलिए उनके पास नाभि खिसकने का कोई उपचार नहीं हैं। लेकिन आयुर्वेद, योग और कुछ घरेलू इलाज से इससे राहत पायी जा सकती है।
आपने लोगो को अधितर यह बोलते सुना होगा कि वजन उठाते वक्त मेरी नाभि (गोला) खिसक गई। इसके बाद वह पेट दर्द, घबराहट, जी मिचलाने की शिकायत करते हैं।
आयुर्वेद अनुसार, जिस प्रकार रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन आ सकता है। उसी प्रकार तरह नाभि और पेट की मांसपेशियों में भी मरोड़ या अन्य दिक्कत आ सकती है। ऐसा होने पर नाभि अपनी जगह से हट जाती है। इसे ही नाभि खिसकना (Navel Displacement), धरण खिसकना, नाप चढ़ना आदि नामो से पुकारा जाता है।
नाभि अधिकांश मामले में ऊपर या नीचे की तरफ चली जाती है। नाभि खिसकने के कई कारण हो सकते है. इसमें भारी वजन उठाना, अचानक झुकना, सीढ़ियां चढ़ना आदि प्रमुख है।
नाभि अपनी जगह से हटने पर किसी भी दिशा की ओर जा सकती है। नाभि खिसकने के लक्षण उसके खिसकने की दिशा के हिसाब से इस प्रकार होते हैं –
ऊपर की तरफ- नाभि के ऊपर की ओर खिसकने पर घबराहट, उल्टी, कब्ज, जी मिचलाना शुरू हो जाता है
नीचे की तरफ- नाभि के नीचे की ओर खिसकने से दस्त, स्वप्न दोष और पाचनतंत्र में गड़बड़ी होती है।
पीछे की तरफ- नाभि आगे-पीछे खिसकने से पेट में दर्द होना शुरू हो जाता है इसमें पेट के निचले हिस्से से पीठ के निचले हिस्से और जांघों में दर्द होता है।
नाभि खिसकने या उतरने की समस्या मुख्यतः बचपन में होती है और नाभि डिगने के पीछे कई कारण होते है, जिनमे से कुछ प्रमुख निम्न है-
- भारी सामान उठाना
- ऊंची जगह से कूदना
- सीढ़ियां चढ़ना
- तेज दौड़ना
- अचानक झुकना
- भावनात्मक या मानसिक चिंता
- भार उठाते समय एक तरफ वजन ज्यादा देना।
- पैर को झटकने से भी नाभि खिसक जाती है।
विशेष- अधिकांश लोगों का अनुभव में रहा है कि पुरुषों की नाभि बाई तरफ और महिलाओं की नाभि दाई तरफ ज्यादा खिसकती है। लेकिन ऐसा क्यों होता है, यह ज्ञात नहीं है।
नाभि खिसकने पर आप घर पर ही इसकी जांच कर सकते हैं। इसकी जांच के कई तरीके होते हैं, जिनमें से प्रमुख तरीको को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है-
नाभि से पैर के अंगूठे की दूरी नाँपना– इस तरीके में नाभि से पैर के अंगूठे की दूरी नापते हैं। सबसे पहले आप रोगी को पीठ के बल सीधा लिटा दें। फिर एक रस्सी से नाभि से पैरों के अंगूठे की दूरी नापे। दोनों पैरों के अंगूठों की दूरी में कितना अंतर है, इससे नाभि खिसकने के संकेत मिलते हैं.
नाभि में नाड़ी की धड़कन ढूंढना– नाभि में नाड़ी ढूंढना एक अन्य तरीका है। इसमे भी आपको जमीन पर पीठ के बल लेटना होता है। फिर अपने हाथ का अंगूठा नाभि के स्थान पर रखना होता है। यदि अंगूठे पर नाभि में धड़कन का एहसास हो तो सही जगह है वरना नाभि खिसक गई है।
नाभि से निप्पल की दूरी नाँपना– इसके परीक्षण का तीसरा तरीका भी काफी हद तक पहले वाले तरीके से ही मिलता है। इसमें आपको अपनी नाभि से निप्पल की दूरी को नापना होता है। अगर इन दूरियों में अंतर होता है तो यह आपकी नाभि के खिसकने का ही संकेत होता है।
भारत मे पुराने समय से ही नाभि खिसकने पर घरेलू उपचार की ही मदद ली जाती है। आपने भी घर के बुजुर्गों द्वारा कई तरह के उपायों को आजमाते हुए देखा होगा। नाभि खिसकने (धरण) के इन्हीं कुछ उपायों को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।
मालिश द्वारा धरण सही करना– नाभि खिसकने को ठीक करने के लिए सबसे पहले मरीज को सख्त जगह पर लिटाया जाता है। फिर मालिश करके इसको सही जगह पर लाने का प्रयास किया जाता है। परंतु यह मसाज किसी विशेषज्ञ द्वारा ही करवानी चाहिए, अन्यथा आपकी समस्या बढ़ भी सकती है।
दिए के प्रयोग से धरण ठीक करना- प्रातः काल खाली पेट रोगों को जमीन पर पीठ के बल लिटाए। अगर नाभि के आसपास बाल हो तो उन्हें साफ कर लें, अथवा उसे पानी से गीला कर लें। अब एक दीये में तेल डालकर इसको जलता हुआ, नाभि के बीच में रख दें। ओर इस दीये को एक कांच के गिलास से ढक दें। इतना करने के बाद आपको गिलास के ऊपर हल्का सा दबाव डालना होगा, ताकि हवा बाहर ना आ सके।
कुछ देर बाद आप देखेंगे कि दीये के अंदर बनी भाप से गिलास आपकी नाभि से चिपक गया है। गिलास के अन्दर की वायु नाभि के स्पन्दन को अपनी जगह पर लाने के लिये खिचाव करेगी। और वह अपनी सही जगह पर आ जाएगी।
थोड़ी देर बाद ग्लास के अन्दर की आक्सीजन समाप्त हो जाने से दीपक बुझ जायेगा। ऐसा होने पर आपको गिलास को हल्के हाथ से ऊपर की ओर उठाना होगा, इससे आपकी नाभि के आसपास की त्वचा भी ऊपर की ओर खिचेगी। कुछ देर बाद गिलास के अंदर की हवा बाहर आ जाएगी और आपकी नाभि की त्वचा सामान्य स्थिति में हो जाएगी।
अब रोगी के स्पंदन की जांच कर उसे बैठा कर कुछ सात्विक ठोस पोष्टिक भोजन कराना चाहिये, ताकि पेट में भोजन के दबाव से नाभि का स्पन्दन अपने स्थान पर ही केन्द्रित रहे। आजकल दीपक के स्थान पर पंप, आर्गन डेवलेपर अथवा बेष्ट पम्प का उपयोग भी किया जाता है। विशेषकर उन रोगियों के लिये जिनके तोंद ज्यादा हो। सावधानी- इस उपाय को किसी अनुभवी के देखरेखा में करना चाहिए। तथा दीये में तेल आधे से भी कम भरना होगा, क्योंकि गर्म तेल से आपकी त्वचा जल सकती है।
सक्शन पंप द्वारा धरण सही करना – सक्सन पंप वैक्यूम थेरेपी पर काम करता है। इसमे पंप के कपनुमा भाग को नाभि के बीच में लगाया दिया जाता है। इसके बाद यह कप पंप की मदद से नाभि पर चिपक जाता है। जिससे नाभि अपनी सही जगह पर आ जाती है। और कप अपने अपने आप हट जाता है।
नाभि खिसकने की समस्या को दूर करने के लिए कई योगासनों का सहारा लिया जा सकता है। योग पद्धति में ऐसे कई आसन बताए गए हैं जिनके अभ्यास से आप की समस्या को ठीक कर सकते हैं।
नाभि को योगासान के माध्यम से भी ठीक किया जा सकता है। नाभि खिसकने को ठीक करने के लिए उन योगासन को किया जाता है जिनसे गुदा के पास की मांसपेशियों में सामान दबाव पड़ता है। इसके लिए नौकासान, भुजंगासान, धनुरासान, मकरासान आदि बेहद फायदेमंद माने जाते है।
सावधानी- नाभि खिसकने पर कई बार रोगी को असहनीय पीड़ा होती है, ऐसी दशा में योगासन करना सम्भव नही हो पाता। ऐसी में अन्य उपाय करना चाहिए।