नागकेसर (Mesua ferrea)
नागकेसर या नागचम्पा एक सीधा सदाबहार वृक्ष है जो देखने में बहुत सुंदर होता है। नाग (सांप) के फन के आकार के कारण ही इसका नाम नागकेसर पड़ा। नागकेसर को उसके औषधीय गुण के लिए भी जाना जाता है। इसलिए आजके इस लेख में हम नागकेसर के औषधीय गुण को जानेंगे..
Contents
नागकेसर का विभिन्न भाषाओं में नाम (Nagkesar Called in Different Languages)
वैज्ञानिक नाम | मेसुआ फैरिया (Mesua Ferrea) |
अंग्रेज़ी | Mesua ferrea, Cobra Saffron, Iron-wood, Indian rose chestnet, |
हिंदी | नागकेसर, नागेसर, पीला नागकेशर, नागचम्पा |
संस्कृत | नागपुष्प, अहिकेशर, अहिपुष्प, भुजङ्गपुष्प, वारण, गजकेसर, नागकेशर, चाम्पेय, तुङ्ग, देववल्लभ, केशर |
गुजराती | नागचम्पा(Nagchampa), ताम्रनागकेसर (Tamrnagkesar) |
मराठी | नागकेसर (Nagkesar), नागचम्पा (Nagchampa) |
नेपाली | नरिसाल (Narisal), नागेसुरी (Nagesuri) |
बंगाली | नागकेसर (Nagkesar), नागेसर (Nagesar) |
तेलगू | नागकेसरमु (Nagkesaramu), राजपुष्पम् (Rajpushpam) |
तमिल | नौगू (Naugu), नौगलिरल (Naugliral) |
मलयालम | नांगा(Nanga), नौगा (Nauga) |
पंजाबी | नागेस्वर (Nageswar), नागकेसर (Nagkesar) |
उड़िया | नागेस्वर (Nageshvar), नागेष्वोरो (Nageshvoro) |
अरबी | मिस्कुरुम्मान (Miskurumman), नारेमिश्क (Naremisk) |
नागकेसर वृक्ष का परिचय (Introduction of Cobra Saffron in Hindi)
नागकेसर एक मध्यम ऊँचाई का वृक्ष है। यह आमतौर पर आसाम, नेपाल, बर्मा, बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में जंगली रूप से पाया जाता है। इसे कहीं-कहीं बाग-बगीचों में भी लगाया जाता है। इसका सदाबहार वृक्ष मध्यम ऊंचाई का दिखने में सुंदर होता है। इसकी लकड़ी इसकी इतनी कड़ी और मजबूत होती है इसलिए इसे ‘वज्रकाठ’ भी कहत हैं।
इसका तना गोल, चिकना और रक्ताभ भूरे रंग की छाल युक्त होता है। पत्ते 3 से 6 इंच लंबे, एक से डेढ़ इंच चौड़े, ऊपर से हरे, चिकने और नीचे से सफेद होते हैं। इसकी पत्तियाँ घनी होती हैं, जिससे इसके नीचे बहुत अच्छी छाया रहती है।
पुष्प 2-3 एक साथ निकलते हैं एवम् पीले गुच्छों में होते हैं। जिनमें बहुत अच्छी महक होती है। फल डेढ़ इंच लम्बा अण्डाकर होता है, जिसके भीतर बीज होते हैं। पुष्प वसंत में तथा फल शरद में लगते हैं। फलों का आकार इंच से बड़ा, अंडाकार, बाह्यकोष युक्त पाया जाता है। बीज एक इंच आकार के, चिकने, भूरे, 1 से 4 की मात्रा में प्रत्येक फल से निकलते हैं। बीजों की मज्जा मांसल और तेल युक्त पाई जाती है। पीला नागकेसर ही अधिकता से प्रयोग में लिया जाता है, जबकि लाल, काला और सिलोन ब्रह्मा का नागकेसर भी कहीं-कहीं पाया जाता है।
नागकेसर के आयुर्वेदिक गुण (Ayurvedic & Unani Properties of Cobra Saffron)
यह एक कफ, पित्त शामक औषधि है, जो पाचन संस्थान में विशेष रूप से अर्श (बवासीर) फिस्चुला, फीशर्स आदि पर ग्राही प्रभाव रखती है। खूनी बवासीर रोकने में पुंकेशर का चूर्ण अतीव लाभकारी है। अग्निमंदता, अजीर्ण, कृमि एवम् प्रवाहिका में यह औषधि विशेष रूप से लाभकारी है। इसे रक्त पित्त, विकार एवम् रक्त प्रदर में भी प्रयोग करते हैं। पुंकेशर का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में जल अथवा मधु के साथ प्रयुक्त होता है।
असली नागकेसर फूलों के बीच गुच्छों में लगे पुंकेसर होते हैं, लेकिन नागकेसर के नकली प्रकार ज्यादा प्रचलित हैं। असली नागकेसर की जगह पुष्प कलिकाओं को लाल नागकेसर के नाम से बेचा जाता है। इसी तरह से काला नागकेसर नाम से दालचीनी के फल भी बेचे जाते हैं।
यह स्वाद में तीखा, मल को बाँधने वाला, गर्म तासीर का पाचन बढ़ाने वाला और रक्तस्राव रोकने वाला होता है, इसकी छाल और जड़ सुगंधित, स्वाद में कड़वी होती है। इसके कच्चे फल सुगंधित, तीखे और रोचक होते हैं। लाल नागकेसर कड़वा, सुगंधित और भूख तेज करने वाला होता है। अधिक प्यास लगना, बवासीर, पाचन बिगड़ जाना तथा पतले दस्त में यह उपयोग में लाया जाता है।
नागकेसर का विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Cobra Saffron in various Diseases in Hindi)
मासिक धर्म: असली नागकेसर और मिसरी को 50-50 ग्राम लेकर कूट-पीसकर कपड़छन कर लें और 6-6 ग्राम की पुड़िया बना लें। साधारण जल से एक-दो ग्राम की मात्रा में निरंतर सेवन से मासिक धर्म की कठिनाई, कमर तथा पेडू आदि की पीड़ा नष्ट हो जाती है और मासिक धर्म समय पर होने लगता है।
खूनी बवासीर: मिसरी और नागकेसर समान मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। 6 ग्राम की मात्रा प्रतिदिन दही में मिलाकर सेवन करें, खूनी बवासीर रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है। सफेद सुरमा और नागकेसर बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर कपड़े से छान लें। आधा ग्राम चूर्ण एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करना सभी प्रकार की बवासीर में लाभकारी है।
नाक से खून निकलना: नागकेसर और सिंघाड़े का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर रखें। इस मिश्रित चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में दिन में 4-5 बार शहद के साथ चाटने से नाक या मूत्र से गिरता खून बंद हो जाता है।
तलवो की जलन: नागकेसर के फूलों का चूर्ण बनाकर घी में मिलाएँ। इस मक्खन जैसे घी का पैरों के तलवों में लेप करने से तलवों की जलन मिट जाती है।
सर्दी: सर्दी में नाक से निरंतर पानी निकलना या सिरदर्द में इसके पत्तों के चूर्ण को दूध में मिलाकर लेप करने से बहुत आराम मिलता है।
जोड़ो का दर्द: बीजों के तेल में भी दर्दनिवारक गुण होता है। जोड़ों के दर्द में तेल की मालिश रोगी को दर्दमुक्त करती है।