मरोड़ फली (Helicteres isora)
मरोड़ फली, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य, पश्चिम एवं दक्षिण भारत के वन्य प्रदेशों में पाया जाता है। इसे अंग्रेज़ी में East Indian screw tree कहते है।
मरोड़ फली का पौधा लगभग 5-7 मी0 ऊचाँ होता है। इसके फल मुड़े हुए होते हैं, इसलिए इसका नाम मरोड़ फली पड़ा। मरोड़ फली अपने औषधीय गुणों कर कारण भी जाना जाता है। इसलिए इसका आयुर्वेद में विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जाता है।

मरोड़ फली या आवर्तनी का विभिन्न भाषाओं में नाम (Marod Phali dar Called in Different Languages)
वैज्ञानिक नाम | Helicteres isora Linn. (हेलिक्टेरेस आइसोरा) |
कुल नाम | Sterculiaceae (स्टरक्यूलिएसी) |
अंग्रेज़ी नाम | East Indian screw tree (ईस्ट इण्डियन क्रू ट्री) |
हिंदी नाम | मरोड़ फली, आवर्तनी, मारोसी, भेन्डु, मरफली, जोंकाफल |
संस्कृत | आवर्तमाला, आवर्तनी, आवर्तफला; |
गुजराती | मुर्दासिंग (Murdasing) |
मराठी | केवन (Kewan) |
बंगाली | अतमोरा (Antamora) |
तेलगू | कावंची (Kavanchi), श्यामली (Syamali) |
तमिल | तिरुकफपालेई (Tirukupalai), वेदामपीरी (Vadampiri), वलमबेरी (Valumberi) |
फ़ारसी | किश्त बर किश्त (Kisht bar kisht), पेचका (Pechaka) |
मरोड़ फली के विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Marod Phali in various diseases in Hindi)
कान के रोग: इसकी कलियों को – कूट कर अदरक के रस में मिला कर उबाला जाता है। इस प्रकार बने तेल की दो से तीन बूँदें कान के चुभन वाले दर्द तथा कान की अन्य बीमारियों में उपयोगी होती हैं ।
हिचकी ज्वर: हिचकी तथा ज्वर के लिए 4-6 ग्राम चूर्ण कलियों का शहद के साथ दिन में 2 बार उपयोग किया जाता है।
त्वचा रोग: इसकी पत्तियों का लेपन कई तरह के त्वचा रोग जैसे, खुजली, एक्जीमा इत्यादि में कारगर है।
उदर शूल: 3–6 ग्राम फलों के चूर्ण को गर्म पानी के साथ प्रतिदिन दो बार लेना उदरशूल में उपयोगी है। इसके फल आँतों के समान दिखते हैं। ये फल मुड़े हुए होते हैं अतः पेट में होने वाले मरोड़ भरे दर्द में उपयोगी हैं।
खुजली: खुजली में इसकी जड़ का लेप बाहर से लगाया जाता है।