आक या मदार (Calotropis Gigantea)
मदार या आक, एक सर्वसुलभ पौधा है। यह पौधा अपने औषधीय गुणों के कारण भी जाना जाता है, इसलिए आजके इस लेख में हम आपको बता रहे है, आक के औषधीय गुण और प्रयोग…
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आक / मदार का विभिन्न भाषाओं में नाम (Madar Called in Different Languages)
वैज्ञानिक नाम | Calotropis Gigantea (केलोट्रोपिस जाइगैंटिया) |
कुल नाम | Asclepiadancea (एसक्लेपियेडेसी) |
अंग्रेज़ी नाम | Madar (मदार) |
हिंदी नाम | आक, मदार, अकवन |
संस्कृत | अर्क, तूलफल, क्षीरपर्ण |
गुजराती | आकड़ो |
मराठी | एक्के |
बंगाली | अक |
तेलगू | मंदाराम |
तमिल | पिल्लेरुक्कु |
फ़ारसी | खरक |
मदार वृक्ष का सामान्य परिचय (Introduction of Madar in Hindi)
मदार, एक औषधीय पादप है। इसको मंदार’, आक, ‘अर्क’ भी कहते हैं। यह ऊंची और शुष्क भूमि पर यह अधिक मात्रा में पाया जाता है। आक के वृक्ष की मुख्य रूप से दो प्रजातियाँ हैं-
- (1) सफेद (White Madar)
- (2) लाल (Red Madar)
लाल आक: लाल आक के पत्ते वटपत्र की तरह गोल होते हैं।सफेद रंग के फूल के भीतर से लाल होते हैं। उनमें बेंगनी रंग की आभा होती है। इसमें दूध कम निकलता है।
सफेद आंक: सफेद रंग के आक के पौधे पर सफेद रंग के कुछ-कुछ पीलापन लिए फूल खिलते हैं। यह प्रायः मंदिरों में शिव जी को चढ़ाया जाता है। इसके अतिरिक्त आक की एक और जाति ‘राजार्क’ पाई जाती है। इसमें एक ही टहनी होती है, जिस पर केवल चार पत्ते लगते है, इसके फूल चांदी के रंग जैसे होते हैं, यह बहुत दुर्लभ जाति है।
पौधे की ऊंचाई 1 से 12 फुट होती है। पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं। हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं। गर्मी के दिनों में यह पौधा हरा-भरा, फल-फूल दार होता है, जबकि वर्षा होते ही सूखने लगता है।
इसका फल आम के समान 3 इंच लंबे और 12 इंच चौड़े होते हैं, जो पकने पर फट जाते हैं। इसमें से सफेद मुलायम रूई निकलती है। आक की शाखाओं में दूध निकलता है। वह दूध विष का काम देता है, जो आंख में चली जाए तो अंधे हो सकते है।
आक या मदार का आयुर्वेदिक और यूनानी गुणधर्म (Ayurvedic & Unani Properties of Aak)
आयुर्वेदिक मतानुसार: आक का रस कटु, तिक्त, लघु, उष्ण प्रकृति, वात-कफ दूर करने वाला, कान-दर्द, दांत दर्द, कृमि, अर्श, खांसी, कब्ज़, उदर रोग, त्वचा रोग, बात रोग, शोथ नाशक होता है। और पढ़ें: आयुर्वेद जड़ी बूटियों की सूचि
यूनानी मतानुसार: आक गर्म, कफ को हटाने वाला, पसीना लाने वाला, बलवर्धक है। गठिया, जलोदर, प्रवाहिका, सर्पविष में लाभप्रद है। आक का दूध दाहक, चमड़ी पर फफोला पैदा करने वाला, दाद, खाज, कोढ़, प्लीहा रोग में भी गुणकारी है। और पढ़ें: वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की सूचि
वैज्ञानिक मतानुसार: आक के रासायनिक तत्त्वों का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसकी जड़ और तने में एमाईरिन (Amyrin), गिग्नटिओल (Giganteol) तथा केलोट्रोपिओल (Calotropiol) के अलावा अल्प मात्रा में मदार ऐल्बन, फ्लेबल क्षार भी मिलता है। दूध में ट्रिप्सिन, उस्कैरिन, कैलोट्रोपिन तथा केलोटोक्सिन तत्व मिलते हैं।
गुण धर्म: आके के पौधे में दूध जैसा चरपरा रस पाया जाता है। यह इस पौधे का सर्वाधिक प्रभावशाली और उपयोगी अंश है। नये आक की जगह पुराने आक की जड़ अधिक वीर्यवान होती है। दोनों प्रकार के आक दस्तावर, वायु विकार, चर्मरोग, बवासीर, कफ, पेट के रोग, वीर्यवृद्धि, पाचक, खाँसी आदि रोगों में काम आते हैं। इसके दूध का स्वाद कड़वा, गर्म, चिकना, हल्का, खारा और चिपचिपा होता है। इसे तंत्र प्रयोग में भी इस्तेमाल करते हैं।
आक की सेवन मात्रा और हानि (Aak dosage & Side Effects in Hindi)
आक का कितना सेवन करें: दूध (250 से 750 मिली ग्राम), जड़ की छाल का चूर्ण आधा से एक ग्राम पत्तों का चूर्ण 300 मिलीग्राम से ग्राम, पत्तों का रस 1 से 5 बूंद, पुष्प 1 से 3 ग्राम
आक की जड़ की छाल अधिक मात्रा में देने से आमाशय और आतों में जलन, दाह, क्षोभ उत्पन्न होकर जी मिचलाहट यहां तक कि उलटी भी होने लगती है। इसका ताजा दूध अधिक मात्रा में देने से विष का कार्य करता है। अतः प्रयोग में मात्रा का विशेष ध्यान रखें।
आक या मदार के विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Aak in various diseases in Hindi)
कील-मुंहासे : आक के दूध में हलदी पीसकर सोते समय कील-मुंहासों पर लगाते रहने से कुछ दिनों में पूर्ण लाभ मिलेगा और चेहरा खिल उठेगा।
दांत रोग: हिलते हुए दांत की जड़ में एक-दो बूंद आक का दूध लगाने से वह आसानी से निकल जाता है। आक की जड़ के टुकड़े को दुखते हुए दांत से दबाने से दर्द कम हो जाता है।
खुजली: आक के 10 सूखे पत्ते सरसों के तेल में उबालकर जला लें। फिर तेल को छानकर ठंडा होने पर इसमें कपूर की टिकियों का चूर्ण अच्छी तरह मिलाकर शीशी में भर लें। खाज-खुजली वाले अंगों पर यह तेल 3 बार लगाएं। दाद शहद और आक का दूध बराबर की मात्रा में मिलाकर नियमित रूप से दिन में 3 बार लगाने से दाद दूर हो जाएगी।
बिच्छू काटने पर: आक का दूध देश पर बार-बार लगाएं, विष दूर होगा।
आधासीसी का सिर दर्द: दो छोटे-छोटे पत्तों का जोड़ा जो आक के पत्तों के बीच में लगा होता है, गुड़ में लपेटकर सूर्योदय के पूर्व सेवन करें। पहली मात्रा से ही लाभ मालूम पड़ेगा। पूरे लाभ के लिए यह प्रयोग 45 दिन तक करें। और पढ़ें: माइग्रेन लक्षण और उपचार
सर्प विष : आक का दूध देश पर बार-बार लगाएं और इसकी जड़ पानी में पीसकर पिलाएं।
जलोदर: इस की शिकायत होने पर आक के पत्तों के 1 लीटर रस में 20 ग्राम हल्दी का चूर्ण मिलाकर उसे मंदी आँच पर पकाएँ। जब घोल गाढ़ा हो जाए तब उसे उतारकर ठंडा कर लें और चने के बराबर की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखा लें। सुबह-शाम 2-2 गोली सौंफ के रस के साथ पिलाएँ। पानी मांगने पर रोगी को यही जल दें। इससे रोगी को जल्द आराम आएगा।
बदहजमी, अपच: आक के पत्तों को रात्रि में पानी में भिगो दें। सुबह उस जल को छान लें। फिर उस जल में उतना ही घृतकारी का गूदा व उतनी ही मिश्री या चीनी या बिना मसाले की शक्कर मिला कर पकावें। जब उसकी चाश्नी बन जाए, तब उसे बोतल में भरकर रख लें। जब कभी ‘बदहजमी’ या ‘अपच’ की शिकायत हो, तब आधा या एक छोटा चम्मच उसका सेवन करें। छोटे बच्चों के लिए यह अचूक दवा है।6-7 से 8-9 साल के बच्चों के लिए विशेष रूप से।
सावधानी: आक का पौधा विषैला होता है। अधिक मात्रा में इसका प्रयोग निश्चय ही घातक हो सकता है, पर यदि उचित और योग्य चिकित्सक की देखरेख में इसका उपयोग किया जाए तो यह अत्यंत ही उपकारी पौधा है।
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