कालमेघ (Green chiretta)

कालमेघ (kalmegh) एक बहुवर्षीय शाक जातीय औषधीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा‘ (Andrographis paniculata) है। इसे आयुर्वेद में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है इसलिए आजके इस लेख में हम कालमेघ के औषधीय गुण और उपयोग के बारे में बता रहे है..

Kalmegh

कालमेघ का विभिन्न भाषाओं में नाम (Green chiretta Called in Different Languages)

वैज्ञानिक नाम Andrographis paniculata
अंग्रेज़ी The Creat, King of Bitters, Common andrographis, Kariyat, Green Chiretta)
हिंदीकालमेघ, कालनाथ, महातिक्त
संस्कृतभूनिम्ब, कालमेघ
बंगाली कालमेघ (Kalmegh), महातीता (Mahatita)
गुजरातीलिलु (Lilu), करियातु (Kariyatu), ओलीकिरियत (Olikiriyat)
मराठीओलेनकिरायत (Olenkirayat)
कन्नड़ नेलबेवीनगीडा (Nelabevinagida), क्रीएता (Kreata)
मलयालम नेलवेप्पु (Nelaveppu), किरियता (Kiriyata), किरीयट्टु (Kiriyattu)
नेपालीकालानाथ (Kalanath), तिक्ता (Tikta)
तेलगूनेलवमु (Nelavamu), नीलावीनू (Nilavinu)
तमिल नीलवेम्बु (Nilavembu), पीतउम्बे (Pitumbe)

कालमेघ का सामान्य परिचय (Introduction of Kalmegh in Hindi)

कालमेघ का पौधा मुख्रयतः भारत एवं श्रीलंका में पाया जाता है तथा दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। इसका तना सीधा होता है जिसमें चार शाखाएँ निकलती हैं और प्रत्येक शाखा फिर चार शाखाओं में फूटती हैं। इस पौधे की पत्तियाँ हरी एवं साधारण होती हैं। इसके फूल का रंग गुलाबी होता है। इसके पौधे को बीज द्वारा तैयार किया जाता है जिसको मई-जून में नर्सरी डालकर या खेत में छिड़ककर तैयार करते हैं। यह पौधा छोटे कद वाला शाकीय छायायुक्त स्थानों पर अधिक होता है। पौधे की छँटाई फूल आने की अवस्था अगस्त-नवम्बर में की जाती है। बीज के लिये फरवरी-मार्च में पौधों की कटाई करते है। पौधों को काटकर तथा सुखाकर बिक्री की जाती है। औसतन ३००-४०० की शाकीय हरा भाग (६०-८० किग्रा सूखा शाकीय भाग) प्रति हेक्टेयर मिल जाती है।

कालमेघ के विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Kalmegh in various diseases in Hindi)

छाजन: कालमेघ के पूरे पौधे के 50 ग्राम पेस्ट को 200 मि.ली. तिल के तेल में मिला लें। इस मिश्रण को नमी दूर होने तक पकाएं। इस तेल को त्वचा के घाव विशेषकर छाजन पर लगाएं। यह डेन्ड्रफ तथा सेबोरिका डर्मेटाइटिस में भी प्रभावी है।

बुखार: कालमेघ पौधे का चूर्ण, सोठ (सूखा अदरक) और कार्ली मिर्च पाउडर समान मात्रा में अच्छी तरह मिलाएं। इस मिश्रण के 3 से 5 ग्राम गर्म पानी के साथ दिन में तीन या चार बार लेने से बार-बार आने वाला बुखार शांत होता है। यह चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू जैसे बुखारों में बहुत प्रभावी औषधि है। यह रक्त शुद्धि की अति उत्तम औषधि है।

उल्टी: पौधे के 2-3 ग्राम महीन चूर्ण को शहद के साथ दिन में दो बार चाटने से भूख और प्यास बढ़ती है। मितली एवं उल्टी में भी लाभकारी है।

पेट के कीड़े: 3 ग्राम पत्तियों का चूर्ण एक सप्ताह तक हर रोज अलसुबह खाली पेट लेने से आंतों के कीड़ें विशेषकर कृमि को समाप्त करने में गुणकारी है। अक्सर होने वाले दर्द और मासिक धर्म के दर्द में भी प्रभावी पाया गया है।

त्वचा रोग: कालमेघ, नीम तथा त्रिफला चूर्ण को समान मात्रा में अच्छी तरह मिलाएं। इस मिश्रण के काढे (5 ग्राम मिश्रण, 100 मि.ली. पानी को एक चौथाई होने तक उबालें) को खाने तथा लगाने दोनों ही तरह से उपयोग में लिया जा सकता है । पुराने त्वचा रोगों तथा फोड़ों को धोने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। दिन में दो बार खाने से यह मधुमेह, खुजली, त्वचा रोगों तथा आँखों की गम्भीर बीमारियों में प्रभावी होता है।

यकृत रोग: किरातिक्त का 10 मि.ली. ताजा रस शहद के साथ प्रतिदिन दो या तीन बार पीना यकृत (Liver) के लिए गुणकारी है साथ ही यह यकृत को विभिन्न प्रकार के विषों से सुरक्षित करता है।

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