जल पीपली (Jal Pippali)


जल पीपल, पानी में उगने वाला एक पौधा है जिसका फल दिखने में पिप्पली की तरह होता है. इसीलिए इसे जल पिप्पली भी कहा जाता है. आयुर्वेद में जल पिप्पली के कई गुणों को उल्लेख़ है. खासतौर पर पेट के रोगों जैसे कि कब्ज, बवासीर आदि के इलाज में यह जड़ी बूटी बहुत कारगर है। इसलिए इस लेख में हम आपको जल पिप्पली के फायदे, नुकसान और औषधीय गुणों के बारे में बता रहे हैं…

जलपिप्पली क्या है? (What is Jal Pippali?)

जल पीपली 15-30 सेमी ऊंचाई वाला पौधा है, जो मानसून के मौसम में ज्यादा नजर आता है. इसका तना गोल, हरे और पीले रंग का होता है। जल पीपल के पौधे से मछली जैसी गंध आती है. इसके फूल बहुत छोटे आकर के गुलाबी और बैगनी रंग के होते हैं। यही फूल बाद में बढ़कर फल बन जाते हैं और छोटी पिप्पली जैसे नजर आते हैं। कश्मीर में पायी जाने वाले जलपिप्पली को औषधि की दृष्टि से सबसे अच्छा माना गया है।

अन्य भाषाओं में जल पिप्पली के नाम (Names of Jal Pippali in Different Languages) 

वैज्ञानिक नाम Phyla nodiflora (फाइला नोडीफ्लोरा)
अंग्रेज़ी Purple lippia (पर्पल लिप्पिया), फ्रोंग फ्रैट (Frog fruit), केप बीड (Cape weed)
हिंदीजलपिपली, पनिसिगा, भुइओकरा
संस्कृतजलपिप्पली, शारदी, शकुलादनी, मत्स्यादनी, मत्स्यगन्धा
गुजरातीरतोलिया (Ratoliya), रतुलियो (Ratuliyo)
मराठीरतोलिया (Ratoliya), जलपिम्पली (Jalapimpali)
नेपालीजलपिप्पली (Jalapippali), एकामर (Aikamar)
ओडिया बुक्कम (Bukkam), विषायन (Visayan)
बंगालीबुक्काना (Bukkana) कांचड़ा (Kanchda)
तेलगूबोकेनाकु (Bokenaku), बोकन्ना (Bokkena)
तमिलपोडुकेली (Podukeli), पोडुटलई (Podutalei)
कन्नड़नेरूपिप्पली (Neerupippali)
मलयालमकट्टुट्टीप्पली (Kattuttippali)

जल पीपली के विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Jal Pippali in various diseases in Hindi)

श्वेत प्रदर के लिए: पत्तियों का चूर्ण बराबर मात्रा में जीरे के साथ मिलाकर प्रतिदिन दो बार 5-10 ग्राम की मात्रा में दिया जाता है।

बवासीर: पत्तियों को पीसकर बनाई गई चटनी बवासीर के इलाज में उपयोगी है।

फोड़ो को पकाने में: इसकी पत्तियों का लेप पस वाले फोडों को जल्दी पकाने में मदद करता है तथा घाव के भरने के लिए भी उपयोगी है। चूंकि इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है अतः यह संक्रमण का इलाज भी काफी अच्छे तरीके से करता है।

रूसी: रूसी के लिए सर पर इसकी पत्तियों का लेप करते हैं। सिद्धा निर्मित पोदुथलाई थाईलम रूसी के लिए बहुत ही कारगर औषधि है।

सर्दी तथा ज्वर: पत्तियों तथा कोमल डंठलों का आसव ( 10 ग्राम जलपिप्पली को 50 मि०ली० गर्म पानी में 3-4 घंटों के लिए भिगोएँ) सर्दी तथा ज्वर में उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग मूत्रवर्धक दवा के रूप में तथा लिथिएसिस में भी होता है।

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