इन्द्रायण (Colocynth)
इन्द्रायण (Indrayan) एक बेल की तरह होता है, जिसमें लगने वाले फल, उसके बीज, जड़ व पत्ते औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। इसलिए आजके इस लेख में हम इंद्रायण के फायदे व इसके सेवन करने का तरीका बता रहे है..
Contents
Indrayan image, Benefits, Usage & Side Effects in Hindi
वैज्ञानिक नाम | Calotropis Gigantea (केलोट्रोपिस जाइगैंटिया) |
कुल नाम | Cucurbitaceae (कुकुरबिटेसी) |
अंग्रेज़ी | Colocynth (कोलोसिन्थ), Bitter apple (बिटर एपॅल) |
हिंदी | इन्द्रायण, इन्द्रायन, गोरूम्ब, इनारुन |
संस्कृत | इन्द्रवारुणी, चित्रा, गवाक्षी, गवादनी, वारुणी; |
गुजराती | इन्द्रावणा (Indravana), इंद्रक (Indrak), त्रस (Tras); |
मराठी | इन्द्रावणा (Indravana), कडुवृन्दावन (Kaduvrindavana), इन्द्रफल (Indraphal) |
कन्नड़ | हामेक्के (Hamekke), तुम्तिकायी (Tumtikayi), पावामेक्केकायी (Pavamekkekayi) |
बंगाली | राखालशा (Rakhalsha) इद्रायण (Indrayan), मकहल (Makhal) |
मलयालम | पेकोमुत्ती (Peykommutti)। |
तेलगू | एतिपुच्छा (Etipuchchha), चित्तीपापरा (Chittipapara), वेरीपुच्चा (Veripuchchha), एटेपुच्चकायी (Etipuchhkayi) |
तमिल | पेयक्कूमुट्टी (Peykkumutti), वेरिकुमत्ती (Verikkummatti), पेदिकारिकौड (Paedikarikaud), तुम्बा (Tumba); |
नेपाली | इन्द्राणी (Indrani) |
इन्द्रायण का सामान्य परिचय (Introduction of Indrayan plant)
इंद्रायन की बेल मध्य, दक्षिण तथा पश्चिमोत्तर भारत, अरब, पश्चिम एशिया, अफ्रीका के उच्च भागों तथा भूमध्यसागर के देशों में पाई जाती है। तरबूज की तरह दिखने वाला “इन्द्रायण” बेहद लाभदायक माना जाता है। इसके फल के गूदे को सुखाकर ओषधि के काम में लाया जाता हैं। इसकी दो किस्में होती हैं-
- बड़ी इन्द्रायण
- छोटी इन्द्रायण
बड़ी इन्द्रायण की लताएँ छोटी से बड़ी होती हैं। दोनों प्रकार की इन्द्रायण में प्रायः एक जैसे ही गुण पाए जाते हैं।
इसके पत्ते तरबूज के पत्तों के समान, फूल नर और मादा दो प्रकार के तथा फल नांरगी के समान दो इंच से तीन इंच तक व्यास के होते हैं। ये फल कच्ची अवस्था में हरे, पश्चात् पीले हो जाते हैं और उन पर बहुत सी श्वेत धारियाँ होती हैं। इसके बीज भूरे, चिकने, चमकदार, लंबे, गोल तथा चिपटे होते हैं। इस बेल का प्रत्येक भाग कड़वा होता हैं।
इन्द्रायण के आयुर्वेदिक और यूनानी गुण (Ayurvedic & Unani Properties of Indrayan)
आयुर्वेद मत: इन्द्रायण स्वाद में कड़वी, चरपरी, शीतल, रेचक, गुल्म, पित्त, विष, उदररोग, कुष्ठ तथा ज्वर को दूर करने वाला कहा गया है। यह जलोदर, पीलिया और मूत्र संबंधी व्याधियों में विशेष लाभकारी तथा खाँसी, मंदाग्नि, कोष्ठबद्धता और रक्ताल्पता में भी उपयोगी कहा गया है।
यूनानी मत: यूनानी मतानुसार यह सूजन को उतारने वाला, वायुनाशक तथा स्नायु संबंधी रोगों में, जैसे लकवा, मिरगी, अधकपारी, विस्मृति इत्यादि में लाभदायक है।
विशेष: यह तीव्र विरेचक तथा मरोड़ उत्पन्न करनेवाला है, इसलिए दुर्बल व्यक्ति को इसे न देना चाहिए।
इन्द्रायण के विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Indrayan in various diseases in Hindi)
बालो का सफेद होना: 50 ग्राम सूखे हुए बीजों के पेस्ट को तिल के तेल में उसकी सारी नमी खत्म होने तक पकाएं। इस तेल के नियमित रूप से खोपड़ी पर मालिश करने से बालों के समय से पहले ही सफेद होने की समस्या दूर होने लगती है।
पेट के रोग: इसकी 1-3 ग्राम जड़ के – चूर्ण को रोजाना सोने से पहले गरम पानी के साथ लेने से कब्ज, पेट की सूजन तथा मासिक धर्म आदि में आराम मिलता है।
विषाक्त भोजन: विषाक्त भोजन की स्थिति में इसके 2-3 ग्राम बीजों के चूर्ण को दिन में दो या तीन बार लें। इससे उल्टी में आराम होगा और संभावित खतरे को रोका जा सकेगा। मछुआरे इसका प्रयोग पर्याप्त मात्रा में करते हैं क्योंकि वे कई बार जहरीली मछलियाँ खाने से विषाक्त भोजन के शिकार हो जाते हैं।
पैरों के छाले और क्रैक्स: मुट्ठी भर सूखे बीजों को 500 ग्राम पानी में तब तक उबालें जब तक कि वह पानी का एक चौथाई नहीं रह जाए। इसके लिए साबुत फल का भी प्रयोग किया जा है। बरसात के मौसम में पैरों के छाले तथा विवाई फटने (क्रक्स) पर इस काढ़े में 15-30 मिनट तक पैर डुबोकर रखने से आराम मिलता है।
चेतावनी: गर्भवती स्त्रियों, छोटे बच्चों और कमजोर व्यक्तियों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। उनके लिए यह हानिकारक हो सकती है। इसलिए सतर्कता रखना बहुत जरूरी है।