हठजोड या अस्थिसंहार (Cissus Quadrangularis)
हड़जोड़ या ‘अस्थिसंधानक’ अंगूर परिवार का बहुवर्षी पादप है। इस औषधि में हड्डी जोड़ने की अद्भुत शक्ति है, इसलिए इसका नाम हडजोड हैं। आइए जानते है हठजोड़ के औषधीय गुण और उपयोग..

हठजोड का विभिन्न भाषाओं में नाम (Hadjod Called in Different Languages)
वैज्ञानिक नाम | Cissus quadrangularis |
अंग्रेज़ी | एडिबल स्टेमड वाइन (Edible stemmed vine), वेल्ड ग्रेप (Veld grape), विंग्ड ट्री वाइन (Winged tree vine) |
हिंदी | हड़जोड़, अस्थिसंहार |
संस्कृत | ग्रन्थिमान्, अस्थिसंहार, वज्राङ्गी, अस्थिश्रृंखला, चतुर्धारा |
गुजराती | चौधरी (Choudhari), हारसाँकल (Harsankal) |
मराठी | कांडबेल (Kandavela), त्रीधारी (Tridhari), चौधरी (Chaudhari) |
कन्नड़ | मंगरोली (Mangaroli), मंगरवल्ली (Mangaravalli) |
मलयालम | बननालमपरान्ता (Bannalamparanta), चांग्लम परांदा (Changalam paranda) |
बंगाली | हाड़भांगा (Harbhanga), हरजोर (Harjora) |
तेलगू | वज्रवल्ली (Vajravalli), नाल्लेरु (Nalleru), नुललेरोतिगे (Nullerotige) |
तमिल | अरुगानी (Arugani), इन्दीरावल्ली (Indiravalli), वज्रवल्ली (Vajravalli) |
हठजोड का आयुर्वेदिक गुण-धर्म (Ayurvedic & Unani Properties of Hadjod /Veld grape)
आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार हड़जोड़ में सोडियम, पोटैशियम और कैल्शियम कार्बोनेट भरपूर पाया जाता है। हड़जोड़ में कैल्शियम कार्बोनेट और फास्फेट होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। आयुर्वेद में टूटी हड्डी जोड़ने में इसे रामबाण माना गया है। इसके अलावा कफ, वातनाशक होने के कारण बवासीर, वातरक्त, कृमिरोग, नाक से खून और कान बहने पर इसके स्वरस का प्रयोग होता है। मुख्य रूप से इसके तने का ही प्रयोग किया जाता है। 10 से 20 मिलीलीटर स्वरस की मात्रा निर्धारित है।
हठजोड का विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Hadjod in various Diseases)
हड्डी टूटने पर: पौधे के तने को अस्थि भंग वाले भाग पर पट्टी बांधने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस पौधे के सत्त (रस) और तिल के तेल (1 भाग पौधे का रस और 4 भाग तिल का तेल) से तैयार तेल को अस्थिभंग वाले स्थान पर लगाया जाता है।
शुष्क जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार दिया जा सकता है और इसे गरम पानी के साथ मिलाकर भी अस्थि भंग वाले स्थान पर लगाया जा सकता है।
अनियमित मासिक धर्म: अनियमित मासिक धर्म में तने और पत्तियों के 15-20 मि०ली० सत्त (रस) को शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार, 3 महीने तक लिया जा सकता है।
कर्ण शूल: तने को हल्का गरम कर के उसका अर्क निकालें और इयर ड्रॉप के तौर पर उपयोग करें। इस अर्क की 2-3 बूंदे कान में डालने से कर्ण शूल मिटता है।
गठिया: हडजोड़ के तने को घी में तला जाता है और अस्थि भंग और गठिया के पुराने रोगों के उपचार में 10-15 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ दिया जाता है।