चांगेरी (Indian sorrel)
चांगेरी (Changeri) एक खर-पतवार है। इसे ‘त्रिपत्रिका’, ‘तिनपतिया’ आदि नाम से भी जाना जाता है। चांगेरी अपने औषधीय गुणों के कारण जग प्रसिद्ध और आयुर्वेद में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।
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चांगेरी / तिनपतिया का विभिन्न भाषाओं में नाम (Changeri Called in Different Languages)
वैज्ञानिक नाम | Oxalis corniculata |
अंग्रेज़ी | सौवर वीड (Sour weed), सौवर ग्रास (Sour grass), येलो सोररेल (Yellow sorrel), इण्डियन सोरेल (Indian sorrel), क्रीपींग ओक्जैलिस (Creeping oxalis |
हिंदी | चांगेरी, तिनपतिया, अंबिलोना, चुकालिपति |
संस्कृत | चांगेरी, दन्तशठा, अम्बष्ठा, अम्ललोणिका, कुशली, अम्लपत्रक; |
गुजराती | आम्बोती (Amboti), अम्बोली (Amboli) |
मराठी | आंबुटी (Ambuti), भिनसर्पटी (Bhinsarpati) |
नेपाली | चारीअमीलो (Chariamilo) |
बंगाली | अमरूल (Amarul), उमूलबेट (Umulbet) |
कन्नड़ | सिबर्गी (Sibargi), पुल्लम-पुरचई (Pullam purchai) |
तमिल | पुलियारी (Puliyarai), पुलीयारी (Puliyari) |
तेलगु | पुलि चिंता (Puli chinta) |
मलयालम | पोलीयाराला (Poliyarala) |
चांगेरी सामान्य परिचय (Introduction of Changeri plant in Hindi)
भारतवर्ष के लगभग सभी गर्म इलाकों में तथा हिमालय पर्वत श्रृंखला पर चांगेरी के पुष्प और फल बारहों महीने मिलते हैं। इसका पौधा छोटा सा और हृदय के आकार के होते हैं। इस पर पीला फूल लगता है।
कहीं-कहीं गुलाबी रंग के पुष्प भी मिलते हैं। इसके फल छोटे-छोटे पीले रंग के गोल बेर की तरह होते हैं। इसके बीज गहरे भूरे रंग के होते हैं।
चांगेरी का आयुर्वेदिक गुण धर्म (Ayurvedic Properties of Changeri)
चंगेरी की पत्तियां विटामिन-सी, कैल्शियम और कैरोटीन का अच्छा स्रोत हैं। चांगेरी में से जो रस निकलता है, वह कड़वा होता है कफ, वायु विकार और सूजन को हरने वाला होता है। पित्त को बढ़ाने वाला दर्द को रोकने वाला, मूत्र को बढ़ाने वाला व बवासीर आदि रोगों में कारगर है।
चांगेरी का विभन्न रोगों में प्रयोग (Use of Changeri in various diseases in Hindi)
खूनी दस्त: खूनी दस्त, मलाशय भ्रंश आदि की स्थिति में पत्तियों का 15-20 मि०ली० सत्त (रस) दिया जाता है। बेहतर परिणामों के लिए इसे छाछ के साथ भी दे सकते हैं।
भूख न लगना: चांगेरी के 10 पत्तों की कढ़ी बनाकर रोगी को देने से उसकी भूख बढ़ती हैं।
सूजन: दर्दनाक सूजन या किसी प्रदाह की स्थिति में पत्तियों के पेस्ट को गुनगुना करके इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रभावित स्थान को ठंडा रखेगा और लक्षणों को भी कम करेगा।
मस्सा: पत्तियों का सत्त (रस) और प्याज का सत्त (रस) एक समान मात्रा में लेकर मिलाया जाता है और उसे मस्सों वाले स्थान पर लगाया जाता है। इस मिश्रण को प्रतिदिन इस्तेमाल करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
सिर दर्द: सिरदर्द के लिए पत्तियों का महीन लेप पूरे ललाट (माथा) पर लगाया जाता है।
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