बहेड़ा (Terminalia Bellirica)
बहेड़ा या बिभीतकी (Terminalia bellirica) के पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लंबे होते हैं। इसके पेड़ 18 से 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं जिसकी छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। इसके पेड़ पहाडों और ऊंची भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। आइए जानते है बहेड़ा के औषधीय गुण और उपयोग…
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बहेड़ा का विभिन्न भाषाओं में नाम (Baheda Called in Different Languages)
वैज्ञानिक नाम | टर्मिनेलिया बेलेरिका (Terminalia Belerica) |
अंग्रेज़ी | सियामीस टर्मिनेलिआ (Siamese terminalia), बास्टर्ड मायरोबालान (Bastard myrobalan) |
हिंदी | बहेड़ा, बहेरा |
संस्कृत | भूतवासा, विभीतक, अक्ष, कर्षफल, कलिद्रुम; |
गुजराती | बेहेड़ा (Beheda), बेड़ा (Beda) |
मराठी | बेहड़ा (Behada), बेहेड़ा (Beheda) |
नेपाली | बर्रो (Barro) |
बंगाली | साग (Saag), बयड़ा (Bayada) |
कन्नड़ | तोड़े (Tode), तोरै (Torei); |
असमिया | बौरी (Bauri) |
मलयालम | थाअन्नी (Tanni) |
तमिल | तन्री (Tanri), तनितांडी (Tanitandi) |
तेलगू | धीन्डी (Dhindi), तडिचेटटु (Tadichettu) |
बहेड़ा वृक्ष का सामान्य परिचय (Introduction of Baheda in Hindi)
आयुर्वेद के प्रसिद्ध योग ‘त्रिफला’ का एक घटक बहेड़ा होता है। इसका वृक्ष लगभग सभी प्रदेशों में पाया जाता है। वृक्ष की ऊंचाई 60 से 100 फुट होती है, जिसका तना गोल, सीधा, सरल और मोटा होता है। मटमैली व हलके पीले रंग की छाल लगभग आधा इंच मोटी होती है। इसके पत्ते 3 से 8 इंच लंबे और 2 से 3 इंच चौड़े महुए के सदृश होते हैं। वसंत ऋतु में पत्ते झड़कर नए पत्तों का जन्म होता है। पुष्प लंबे पुष्पदंडों पर छोटे-छोटे मंजरियों में हलके हरे रंग या खाकी रंग के लगते हैं। और पढ़ें: आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों की सूचि
फल अंडाकार, गोल और लंबाई में एक इंच का होता है, जो बहेड़ा के नाम से जाना जाता है। इसके अंदर एक मींगी निकलती है, जो मीठी होती है। अधिकतर औषधि प्रयोग में फल का छिलका काम में लिया जाता है। आकार के हिसाब से बहेड़ा छोटा और बड़ा दो प्रकार का मिलता है।
बहेड़ा का आयुर्वेदिक और यूनानी गुणधर्म (Ayurvedic & Unani Properties of Baheda)
आयुर्वेदिक मतानुसार: बहेड़ा रस में मधुर, कषाय, गुण में हलका, खुश्क, प्रकृति में गर्म, विपाक में मधुर, त्रिदोश नाशक, दीपन, धातुवर्धक, पोषक, रक्त स्तम्भक, वेदनाहर और आंखों के लिए गुणकारी होता है। यह कब्ज़, उदर कृमि, श्वास, खांसी, बवासीर, अग्निमांद्य, गले के रोग, कुष्ठ, स्वर भेद, आमवात, चर्म रोग, कामशक्ति की कमी, बालों के रोग, जुकाम, हाथ-पैर की जलन में लाभप्रद है।
मात्रा: फल के छिलकों का चूर्ण 2 से 5 ग्राम।
उपलब्ध आयुर्वेदिक योग- विभीतकासव, बहेड़े का मुरब्बा, त्रिफला, मंडूर लवण। और पढ़ें: आयुर्वेदिक दवा सेवन का सही तरीका
हानिकारक प्रभाव: फल की मींगी का अधिक मात्रा में किया गया सेवन विषेला प्रभाव उत्पन्न करता है। नशा भी उत्पन्न कर सकता है।
बहेड़ा में पौषक तत्व (Nutritional value of Baheda)
वैज्ञानिक मतानुसार बहेड़ा की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसके फल में 17 प्रतिशत टैनिन, 25 प्रतिशत मींगी में हलके पीले रंग का तेल, सैपोनिन, राल पाए जाते हैं।
बहेड़ा का विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Baheda in various diseases in Hindi)
कामशक्ति बढ़ाने हेतु: रोजाना एक बहेड़े का छिलका खाएं।
हाथ-पैर की जलन: हाथ पैरों मे जलन होने पर बहेड़े की मींगी (बीज) को पानी में पीसकर हाथ-पैर पर मलें। आंखों की ज्योति बढ़ाने के लिए बहेड़े का छिलका और मिस्री समभाग मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम गर्म पानी से सेवन करते रहने से कुछ हफ्ते में में नेत्र ज्योति बढ़ती है।
कब्ज़: बहेड़े का अधपका फल चूर्ण कर लें सोते समय रोजाना एक-दो चम्मच आवश्यकतानुसार पानी से सेवन करें। सुबह पेट साफ हो जाएगा।
बालों के रोग: बहेड़े के फल का चूर्ण बनाकर 2 चम्मच की मात्रा एक कप पानी में रात्रि में भिगोकर रख दें और सुबह इसे बालों की जड़ों पर मल कर लगाएं। एक घंटे बाद नहाते समय धो लें। इस प्रयोग से बालों का असमय गिरना रुकेगा।
बीजों की गिरी के 25 मिलीलीटर तेल में 75 मिलीलीटर नारियल का तेल मिलाकर रोजाना सुबह-शाम वालों में लगाने से असमय बालों का पकना, सफेद होना, झड़ना रूसी में फायदा होगा।
अतिसार: फलों को जलाकर तैयार की भस्म में एक चौधाई मात्रा में सेंधा नमक मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में 2-3 बार सेवन करने से शीघ्र लाभ होगा।
मुंहासे: बीजों की गिरी का तेल रोजाना सोते समय मुंहासों पर और पूरे चेहरे पर मलने से रौनक बढ़ेगी।
खांसी: मंद आंच पर बहेड़े के फल को भून लें। फिर उसे तोड़कर छिलके के टुकड़े को मुंह में चाकलेट की तरह चूसते रहने से कफ ढीला होकर खांसी में आराम मिलेगा और आवाज में सुधार आएगा।
शक्ति वृद्धि: शक्ति वर्द्धन के लिए आंवले की तरह ही तैयार किए बहेड़े के फल का मुरब्बा नियमित रूप से सुबह-शाम खाते रहने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है।
मलावरोध: बच्चो का मलावरोध होने पर पत्थर पर जल के साथ बहेड़े का फल घिसकर आधा चम्मच की मात्रा में एक चम्मच दूध के साथ सेवन कराने से मलावरोध दूर होगा।