अश्वगंधा (Ashwagandha)
भारतवर्ष में अश्वगंधा (Ashwagandha) एक महत्त्वपूर्ण पौधा है। इसे भारतीय जेनसँग के नाम से शक्तिवर्धक पौधे की मान्यता प्राप्त है। इसके अलावा यह दौर्बल्य, श्वेत प्रदर, सामान्य दौर्बल्य, मानसिक अवसाद, हृदय आदि रोगों में भी लाभकारी है। आइए जानते है, अश्वगंधा का उत्पादन और औषधीय प्रयोग…
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Ashwagandha: Health Benefits side Effects
अश्वगंधा नाम क्यों पड़ा?
भावप्रकाश के अनुसार- “असगन्ध में घोड़े के पेशाब जैसी गंध आने के कारण इसका नाम अश्वगन्धा पड़ा है।” जैसे-जैसे इसकी जड़ सूखती जाती है, वैसे वैसे गंध दूर हो जाती है।
अश्वगंधा का पौधा कहा पाया जाता हैं?
अश्वगंधा का पौधा सम्पूर्ण भारत मे पाया जाता हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में मंदसौर तथा राजस्थान में नागौर में यह बहुतायत में होता है। यह दो प्रकार का होता है-छोटा व बड़ा।
असगंध का विभिन्न भाषाओं में नाम (Asgandha Called in Different Languages)
वैज्ञानिक नाम | वितानिआ सोम्निफेरा (Withania somnifera) |
अंग्रेज़ी | इंडियन जेनसंग (Winter Cherry) |
हिंदी | असगंध, अश्वगंधा |
संस्कृत | अश्वगंधा, वराहकर्णी |
गुजराती | आसंध, घोड़ा आहन, घोड़ा आकुन |
मराठी | आसंध, डोरगुंज |
नेपाली | अश्वगन्धा |
बंगाली | अश्वगंधा |
तेलगू | पेनरु |
अश्वगंधा वृक्ष का परिचय (Introduction of ashvgandha in Hindi)
अश्वगंधा का पौधा: अश्वगंधा का पौधा 2 से 3 फुट लंबा होता है। यह एक सीधी, सदाबहार, शाखायुक्त, झाड़ीदार पौधा होता है।इसकी जड़ ही आषधि में प्रयुक्त होती है।
अश्वगंधा का जड़: अश्वगंधा का जड़ ऊपर से मटमैली, अंदर से सफेद, कठोर, मोटी-पतली और 4 से 8 इंच लंबी होती है।
अश्वगंधा के पत्ते: अश्वगंधा के पत्ते अण्डाकार 5-10 सेंटीमीटर लम्बे तथा 2-5 सेंटीमीटर चौड़े होते हैं। पुष्प छोटे पीले व हरापन लिए तथा फल गोल, मटर के फल के समान हरे होते हैं।
अश्वगंधा का पुष्प: अश्वगंधा के पुष्प प्रायः 5 के चूड़ाकार गुच्छे में पीले और हरे रंग के लगते हैं।
अश्वगंधा का फल: अश्वगंधा का फल 2 से 3 इंच के गोलाकार रसभरी के समान लाल रंग के होते हैं। इसके बीज पीले रंग के छोटे, चपटे और चिकने होते हैं
असगंध का आयुर्वेदिक और यूनानी गुणधर्म (Ayurvedic & Unani Properties of Asgandha)
असगन्ध एक बलकारक, पुष्टिकारक और शारीरिक सौंदर्य बढ़ाने वाली जड़ी है, जिसके वाजीकरण गुणों की प्रधानता के कारण इसकी जनरल टॉनिक के रूप में सभी चिकित्सा पद्धतियों में मान्यता प्रदान की गई है।
आयुर्वेद मत: असगन्ध हलकी, तिक्त, कटु, मधुर रस युक्त, गरम, स्निग्ध, कफ़-बात शामक, वीर्यवर्धक, बलवर्धक, कसैली, कड़वी, कांतिजनक एवं पुष्टिकारक है, साथ ही कृमि, व्रण, कास, श्वास, क्षय, श्वेत कुष्ठ, आमवात नाशक जड़ है। इसके अलावा स्तन्यवर्धक, गर्भधारण में सहायक भी है। और पढ़ें: जाने, आयुर्वेद की ABCD
यूनानी मत: असगंधजड़ी तीसरे दर्जे की उष्ण है। स्त्री पुरुष की कामशक्ति बढ़ाने और कटिशूल को दूर करने में यह बहुत प्रभावी है वीर्य के पतलेपन को यह दूर करती है। और पढ़ें: वैकल्पिक चिकित्सा
अश्वगंधा में पौषक तत्व (Nutritional value of Arjuna)
असगंध में एनाहिग्रिन, कुसिओहाइग्रिन, एनाफेरिन, ट्रोयूडोस्पीन, बिदासोमिन, ट्रोपिन, सोम्निफेरिन आदि क्षारीय तत्व पाए जाते हैं, जो बलकारक, रसायन, निद्राजनक गुण रखते हैं। इसके अलावा स्टार्च, शर्करा, अम्ल, ग्लाइकोसाइड, एमिनो एसिड भी पाए जाते हैं।
अश्वगंधा का विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Asgandha in various diseases)
अनिद्रा: सोने के समय से एक घंटा पूर्व एक चम्मच असगन्ध चूर्ण को घी तथा शक्कर में मिलाकर एक कप दूध के साथ सेवन करें। याददाश्त की कमी असगन्ध और ब्राह्मी का चूर्ण एक-एक चम्मच मिलाकर दो चम्मच शहद के साथ सेवन कराएं। और पढ़ें: अनिंद्रा के कारण और उपचार
माइग्रेन: असगन्ध की जड़ को पानी में एक-दो घंटे भिगोकर जड़ को पत्थर पर घिसकर मष्तिष्क पर दिन में दो बार लेप करें। साथ ही 1 चम्मच असगंध का चूर्ण एक कप दूध के साथ सेवन करें। और पढ़ें: माइग्रेन लक्षण और उपचार
स्तनों का पुष्टीकरण : असगन्ध की जड़ को घी में घिसकर लेप बनाकर सुबह-शाम नियमित रूप से स्तनों में मालिश करने से स्तन पुष्ट और कठोर हो जाएंगे। और पढ़ें: पुरुषों में स्तन वृद्धि की समस्या
स्तनों में दूध वृद्धि : असगंध, मुलेठी, शतावर, विदारीकन्द को बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें तैयार चूर्ण की एक चम्मच मात्रा दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ सेवन कराएं।
बच्चों का दुबलापन: असगन्ध का आधा चम्मच चूर्ण और एक चम्मच देसी घी को आधा कप दूध में मिलाकर सुबह-शाम नियमित सेवन करने से दुर्बलता दूर होती है। और पढ़ें: वजन बढ़ाने के लिए डाइट प्लान
हृदय पीड़ा: असगन्ध और बहेड़ा समान मात्रा में मिलाकर गुड़ के साथ बेर के बराबर गोली बना दिन में तीन बार लें।
असगंध को कितना और कब खाएं (How Much Asgandha Can Be Taken Per Day)
अश्वगंधा सेवन मात्रा: असगंध की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम और काढ़ा 15-20 मिलीलीटर तक सेवन किया जा सकता हैं।
प्रसिद्ध आयुर्वेदिक योग: अश्वगन्धादि चूर्ण, अश्वगन्धारिष्ठ, अश्वगन्धादि गुग्गुल, अश्वगन्धादि घृत, अश्वगन्धा तेल आदि।