अर्जुन (White Murdah)

अर्जुन एक औषधीय वृक्ष है। भारत मे अर्जुन का पेड़ हर जगह पाया जाता है, जिसमे मुख्यतः यह मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में पाया जाता है।

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अर्जुन का विभिन्न भाषाओं में नाम (Tarminalia Arjuna Called in Different Languages)

वैज्ञानिक नामटर्मिनेलिया अर्जुन (Tarminalia Arjuna)
अंग्रेज़ी Arjuna, White murdah
हिंदीअर्जुन
संस्कृतअर्जुन, घवल
गुजरातीसादड़ों, घोलो
मराठीसदडा, अर्जुन, सदरू
नेपालीकाहू
बंगालीगाछ
तेलगूधर्ममछि

अर्जुन के पेड़ का स्वरूप (Introduction of Arjuna Tree in Hindi)

बाह्य स्वरूप: अर्जुन एक विशाल सदाबहार वृक्ष होता है, इसकी उच्चाई 80 फुट तक हो सकती है। यह छत्र फैलाव लिये होता है तथा नीचे की ओर लटकी हुई शाखाएँ बहुत मोटी होती हैं।

अर्जुन का वृक्ष प्रायः नदी-नाले तथा तालाब के किनारों पर स्वतः उग जाया करता है। अर्जुन जाति के कम से कम पन्द्रह प्रकार के वृक्ष भारत में पाए जाते हैं। जिनका औषधियों गुणों में भेद पता करना अत्यंत मुश्किल है।

अर्जुन के पत्ते: अर्जुन के पत्ते 7 से 20 सेंटीमीटर लंबे आयताकार या कहीं-कहीं नुकीले होते हैं। इसके किनारे सरल तथा कहीं-कहीं सूक्ष्म दाँतों वाले होते हैं। ऊपरी भाग चिकना व निचला रूक्ष तथा शिरायुक्त होता है।

अर्जुन की छाल: अर्जुन की छाल बाहर से सफेद, अंदर से चिकनी, मोटी तथा हलकी गुलाबी रंग की होती है। छाल की मोटाई लगभग 5 मिलीमीटर होती है।

औषधियों में सर्वाधिक छाल का ही प्रयोग होता है। इसका स्वाद कसैला और तीखा होता है। इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है। इसे उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएँ चाहिए। अतः एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती हैं।

अर्जुन का फल: अर्जुन के वृक्ष में फल वसंत में ही आते हैं। इनमें हलकी-सी सुगंध भी होती है। फल लंबे, अण्डाकार, 5 या 7 धारियों वाले, जेठ से श्रावण मास के बीच लगते व शीतकाल में पकते हैं। 2 से 5 सेंटीमीटर लंबे ये फल कच्ची अवस्था में हरे-पीले तथा रखने पर भूरे-लाल रंग के हो जाते हैं। फलों की गंध अरुचिकर व स्वाद कसैला होता है। फल ही अर्जुन का बीज है।

अर्जुन का गोंद: वृक्ष को गोदने से एक प्रकार का दूध निकलता है। जिसे अर्जुन की गोंद कहते है यह गोंद स्वच्छ, सुनहरा भूरा व पारदर्शक होता है।

अर्जुन में पौषक तत्व (Nutritional value of Arjuna)

अर्जुन की छाल में बीटा साइटोस्टेरॉल, ग्लूकोसाइड अर्जुनेटिन, अर्जुनिक अम्ल, इलेगिक एसिड, फ्रीडेलीन, टेनिन्स, कैल्शियम कार्बोनेट, सोडियम मैग्नीशियम, अल्युमीनियम, शर्करा और अज्ञात कार्बनिक अम्ल होते हैं।

इसका नियमित सेवन करने से उपरोक्त तत्वों के कारण हृदय का उत्तम पोषण होता है, पेशियों को बल मिलता है। दुर्बलता दूर होती है।

अर्जुन के आयुर्वेदिक और यूनानी गुणधर्म (Ayurvedic & Unani Properties of Arjuna)

आयुर्वेदिक मतानुसार: अर्जुन कषाय, तिक्त, शीतवीर्य, लघु, व्रणशोधक, हृदयरोग विनाशक, कफ, पित्त, तृष्णा, प्रमेह, पाण्डु रोग, रक्त विकार, दाह, स्वेदाधिक्य नाशक है। और पढ़ें: जानें आयुर्वेद की ABCD

यूनानी मतानुसार: अर्जुन की छाल तीसरे दर्जे की गर्म होती है। अस्थिभंग, घावों में भी उपयोगी है। इसके अतिरिक्त पौष्टिक, कामोद्दीपक, कफ निवारक के गुण पाए जाते हैं। और पढ़ें: वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति

विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Arjun in various diseases)

हड्डी टूटने पर: हड्डी टूटने पर, प्लास्टर चढ़ा हो, तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी जल्द ही जुड़कर मजबूत हो जाती है।

हृदय रोग में : अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक गिलास दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है। हृदय स्पंदन सामान्य गति से होता है, रक्तवाही धमनियों (कोरोनरी आट्रीज) में खून का थक्का बनने से रुकता है।

उच्च रक्त चाप: एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाती है। और पढ़ें: हाई ब्लड प्रेशर के लिए डाइट प्लान

रक्त प्रदर: अर्जुन की छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी सी मिसरी मिलाकर दिन में 3 बार लें।

शारीरिक दुर्गंध: अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से शारीरिक दुर्गन्ध दूर होती है। और पढ़ें: पसीने की दुर्गंध को कहे अलविदा

मुंह के छाले: अर्जुन की छाल को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगाएं, लाभ होगा।

प्रसिद्ध आयुर्वेदिक योग: अर्जुनारिष्ट, अर्जुन वृत, ककुभादि चूर्ण आदि।

अर्जुन को कितना और कब खाएं (How Much Arjuna Can Be Taken Per Day)

  1. अर्जुन की छाल: छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, मधु या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार लिया जा सकता है।
  2. छाल का काढ़ा: 50 से 100 ml
  3. पत्तों का रस: 10 से 20 ml
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