अरंडी (Castor)
अरंडी (Castor) तेल का पेड़ एक पुष्पीय पौधे की बारहमासी झाड़ी होती है, पेड़ मूलतः दक्षिण-पूर्वी भूमध्य सागर, पूर्वी अफ़्रीका एवं भारत की उपज है, किन्तु अब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खूब पनपा और फैला हुआ है।
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Castor image Benefits, Uses & Side Effects in Hindi

अरंडी का विभिन्न भाषाओं में नाम (Castor Plant name in different languages)
वैज्ञानिक नाम | Ricinus |
अंग्रेज़ी नाम | केस्टर आइल प्लान्ट (Castor oil plant) |
हिंदी नाम | अरंडी, अरंड, इरण्ड, |
गुजराती | इरान्डिओ, इनरान्डो |
मराठी | इराण्ड |
मलयालम | अवानाकु |
कन्नड़ | हरालु, ओडाला गिडा |
बंगाली | बेहेरेन्दा |
उड़िया | जाडा, गाबा |
तेलगू | अमुदापु विरु |
तमिल | अमुदापु विरु |
उर्दू | बेदांजीर, अरण्ड |
अरंडी के पेड़ का सामान्य परिचय (introduction of Castor Oil Plant in Hindi)
अरंडी का पेड़ लगभग 12 मी आकार तक का हो सकता है। इसकी चमकदार पत्तियॉ 15-45 सेमी तक लंबी, हथेली के आकार की, 5-12 सेमी गहरी पालि और दांतेदार हाशिए की तरह होती हैं। उनके रंग कभी कभी, गहरे हरे रंग से लेकर लाल रंग या गहरे बैंगनी या पीतल लाल रंग तक के हो सकते है। तना और जड़ के खोल भिन्न भिन्न रंग लिये होते है।
अरंडी का तेल (Castor Oil)
अरण्डी का तेल साफ, हल्के रंग का होता है, जो अच्छे से सूख कर कठोर हो जाता है और गंध से मुक्त होता है। यह शुद्ध ऍल्कालोइड़स के लिये एक उत्कृष्ट सॉल्वैंट के रूप में नेत्र शल्य चिकित्सा में प्रयुक्त होता है।
अरंडी का बीज (Castor Seeds)
अरण्डी का बीज ही बहुप्रयोगनीय कैस्टर ऑयल (अरंडी के तेल) का स्रोत होता है। बीज में 40- 60% तक तेल उपस्थित होता है, जिसमें ट्राईग्लाइसराइड्स (Triglyceride), खासकर रिसिनोलीन (Ricinoleic) बहुल होता है। इस बीज में रिसिन (Ricin) नामक एक कुछ विषैला पदार्थ भी होता है, जो लगभग पेड़ के सभी भागों में उपस्थित रहता है।
अरंडी का विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Arandi in various diseases in Hindi)
पीलिया: 3-5 ग्राम नरम पत्तियों का महीन पेस्ट अलसुबह खाली पेट लेने से पीलिया में आराम मिलता हैं।
सूजन तथा दर्द: परिपक्व हुई पत्तियों के लेप को छोटे रवेदार नमक के साथ मिलाकर गर्म करे और इसका गुनगुना लेप मांसपेशी की सूजन तथा जोड़ों पर लगाएं। यह सूजन तथा दर्द को कम करता है।
पाचक: 10 मि.ली. अरण्डी का तेल एक कप दूध में मिलाकर एक माह तक प्रतिदिन रात्रि भोजन के पश्चात लेना गुणकारी है।यह शरीर से मल अपशिष्ट को आसानी से हटाने में मदद करता है।
साइटिका: 10 ग्राम जड़ के चूर्ण को 100 मि.ली. दूध में उबालकर इसे आधा कर लें तथा प्रतिदिन दो बार गृध्रसी (साइटिका) के दर्द के निवारण के लिए सेवन करें। इससे कब्ज में भी राहत मिलती है।
उदरशूल: अरण्डी की पूरी पत्ती और तिल के तेल का लेप करें तथा थोड़ा सा गर्म कर इसे पेट (नाभि ) पर लगाया जाए तो इससे उदरशूल में राहत मिलती है।
कृमि रोग: 2 ग्राम पलाश बीजों के चूर्ण को 10 मि.ली. अरण्डी के तेल के साथ रात्रि में सोने के पूर्व लिया जाए। इस औषध से सूक्ष्म कृमि से 3-4 दिनों में राहत मिल जाती है।
दूध की कमी: दूध पिलाने वाली माताओं के मामले में पत्तियों को गर्म कर स्तन पर पट्टी के रूप में दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए लगाएं। यह स्तन के फोड़े में भी गुणकारी है।