अपामार्ग या चिरचिटा (Achyranthes Aspera)

अपामार्ग, एक औषधीय वनस्पति है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘अचिरांथिस अस्पेरा’ (Achyranthes aspera) है। हिन्दी में इसे ‘चिरचिटा’, ‘लटजीरा’, ‘चिरचिरा आदि नामों से जाना जाता है। इसे कहीं-कहीं इसे कुकुरघास भी कहा जाता है। 

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Apamarga / Chirchita: Image, Health Benefits & Side Effects

Apamarg

विभिन्न भाषाओं में नाम (Apamarg Called in Different Languages)

वैज्ञानिक नामएचिरन्स ऐस्पेरा (Achyranthes Aspera)
अंग्रेज़ी (प्रिकली चाफ फ्लावर) Prickly Chaff Flower
हिंदीचिरचिटा, लटजीरा
संस्कृतअपामार्ग
गुजरातीअघेडो
मराठीअघाड़ा
नेपालीचिरचिटा
बंगालीआपांग
तेलगूउत्तरेनु

अपामार्ग का सामान्य परिचय (Introduction of Apamarg)

अपामार्ग का पौधा भारत के समस्त शुष्क स्थानों पर उत्पन्न होता है। यह गांवों में अधिक मिलता है। खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पर पाया जाता है। इसकी ऊंचाई सामान्यतया 2 से 4 फुट होती है। अपामार्ग दो प्रकार के होते है-

  1. लाल अपामार्ग
  2. सफेद अपामार्ग

सफेद अपामार्ग: सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं। इसके अलावा फल चपटे होते हैं।

लाल अपामार्ग: लाल अपामार्ग का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैं। फल चपटे और कुछ गोल होते हैं। इस पर बीज नोकीले कांटे के समान लगते हैं।

दोनों प्रकार के अपामार्ग के गुणों में समानता होती है। फिर भी सफेद अपामार्ग श्रेष्ठ माना जाता है। इनके पत्ते गोलाई लिए हुए 1 से 5 इंच लंबे होते हैं। चौड़ाई आधे इंच से ढाई इंच तक होती है। पुष्प मंजरी की लंबाई लगभग एक फुट होती है, जिस पर फूल लगते हैं। फल शीतकाल में लगते हैं और गर्मी में पककर सूख जाते हैं। इनमें से चावल के दानों के समान बीज निकलते हैं। इसका पौधा वर्षा ऋतु में पैदा होकर गर्मी में सूख जाता है।

अपामार्ग के गुण (Ayurvedic & Unani Properties of Apamarg)

आयुर्वेदिक मतानुसार: अपामार्ग तिक्त, कटु, तीक्ष्ण, गर्म प्रकृति, विपाक में कटु होता है। यह अग्निप्रदीपक, दस्तावर, पाचक, रुचिकारक और दर्द निवारक, विष, कृमि व पथरी नाशक, रक्तशोधक, ज्वरहर, श्वास रोग नाशक, क्षुधा नियंत्रक, सुखपूर्वक प्रसव हेतु एवं गर्भधारणार्थ उपयोगी है। और पढ़ें: आयुर्वेद आयुर्वेदिक दवा सेवन का सही तरीका

यूनानी मतानुसार: अपामार्ग पहले दर्जे की शीतल, वीर्यवर्द्धक, कामोद्दीपक, मूत्रल तथा धातुपरिवर्तक है। वैज्ञानिक मतानुसार अपामार्ग के किए गए रासायनिक विश्लेषण से इसमें 30 प्रतिशत पोटाश क्षार, 13 प्रतिशत चूना, 7 प्रतिशत सोरा क्षार, 4 प्रतिशत लोहा, 2 प्रतिशत नमक एवं 2 प्रतिशत गंधक पाया गया है। पत्तों की अपेक्षा जड़ की राख में ये तत्त्व अधिकता से मिलते हैं। और पढ़ें: वैकल्पिक चितित्सा पद्धतियों की सूची

मात्रा: पत्र, मूल व बीज का चूर्ण 3 से 5 ग्राम पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर। भस्म 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम।

अपामार्ग के विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Apamarg in various diseases)

विष का उपचार: विष पर जानवरों के काटने व सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लगाने और पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में 2 बार पिलाने से विष का असर तुरन्त घट जाता है और जलन, दर्द में आराम मिलता है।

पत्तों की पिसी हुई लुगदी को दंश के स्थान पर पट्टी से बांध देने से सूजन नहीं आती और वेदना दूर हो जाती है। सूजन चढ़ चुकी हो, तो शीघ्र ही उतर जाती है।

दांत रोग: अपामार्ग के फूलों की मंजरी को पीसकर नियमित रूप से दांतों पर मलकर मंजन करने से दांत मजबूत होते जाते हैं। पत्तों के रस को देखते दांतों पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है। तने या जड़ की दातौन करने से भी दांत मजबूत होते एवं मुंह की दुर्गन्ध नष्ट होती है।

प्रसव सुगमता: प्रसव में ज्यादा विलम्ब हो रहा हो और असहनीय पीड़ा की अनुभूति हो रही हो, तो रविवार या पुष्य नक्षत्र वाले दिन जड़ सहित उखाड़ी सफेद अपामार्ग की जड़ काले कपड़े में बांधकर प्रसूता के गले में बांधने या फिर कटि प्रदेश में बांधने से शीघ्र प्रसव हो जाता है।

प्रसव के तुरंत बाद जड़ शरीर से अलग कर देनी चाहिए, अन्यथा गर्भाशय भी बाहर निकल सकता है। जड़ को पीसकर पेडू पर लेप लगाने से भी यही लाभ मिलता है। लाभ होने के बाद लेप पानी से साफ कर दें।

स्वप्नदोष: अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और मिसरी बराबर की मात्रा में पीसकर रख लें। एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक-दो हफ्ते तक सेवन करें। मुंह के छाले अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लगाएं।

शीघ्रपतन: अपामार्ग की जड़ को अच्छी तरह धोकर सुखा लें। इसका चूर्ण बनाकर 2 चम्मच की मात्रा में लेकर एक चम्मच शहद मिला लें। इसे एक कप ठंडे दूध के साथ नियमित रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करने से स्तम्भन बढ़ता है।

संतान प्राप्ति के लिए: अपामार्ग की जड़ को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ ऋतुकाल के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्भधारण होता है।

भूख कम करने के लिए: अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों का चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।

शरीर पुष्टि हेतु: अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिसरी मिलाकर पीस लें। एक कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है। और पढ़ें: वजन बढ़ाने के लिए डाइट प्लान

सिर दर्द: अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है। और पढ़ें: माइग्रेन लक्षण और उपचार

मलेरिया: मलेरिया से बचाव अपामार्ग के पत्ते और काली मिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का 2-1 दिन सेवन पर्याप्त होता है।

गंजापन: कड़वे तेल (सरसों) में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुनः बाल उगने की संभावना होगी।

खुजली: अपामार्ग के पांचों अंगों की समान मात्रा को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों में खुजली दूर हो जाएगी।


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