अनंतमूल (Indian Sarsaparilla)
अनंतमूल (Anantmool) एक बेल है जो लगभग सारे भारतवर्ष में पाई जाती है। इसे अंग्रेजी में ‘इंडियन सार्सापरिला’ कहते हैं। आजके इस लेख के में हम अनन्तमूल के औषधीय गुण और उपयोग के बारे में जानेंगे…

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अनंतमूल का विभिन्न भाषाओं में नाम (Anantmool Called in Different Languages)
वैज्ञानिक नाम | Indian sarsaparilla (Hemidesmus indicus) |
अंग्रेज़ी | Indian Sarsaparilla, Black creeper |
हिंदी | कालीसर, काली अनन्तमूल, दुधलता |
संस्कृत | श्यामा, गोपी, कृष्णसारिवा, गोपवधू |
मराठी | कृष्णसारवा (Krishnasarwa), कांटेभौरी (Kantebhouri) |
बंगाली | सियामलाता (Syamalata), श्यामलता (Shyamalata), दूधी (Dudhi) |
कन्नड़ | गोरवीबल्ली (Gorwiballi), करीहम्बु (Karihambu) |
तेलगू | इलुकट्टे (Illukatte) |
ओडिया | सोयमनोई (Soyamnoi), माधोबी (Madhobi) |
असमी | दूधकुरी आयोटा (Dudhkuri iota) |
तमिल | उदरगोडी (Udargodi), परावल्ली (Paravalli), इलुकट्टे (Illukatte) |
नेपाली | नेल्लाटीगा (Nellateaga), दुधे लहरा (Dudhe lehra) |
अनंतमूल का समय परिचय (Introduction of Anantmool in Hindi)
अनन्तमूल मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है- एक
- काली अनन्तमूल
- सफेद अनन्तमूल
इसका पत्ता अनार के समान होते हैं और उनमें सफेद छींटे पड़े होते हैं। इसकी बेल से और मुख्यतः जड़ से कपूर की सी सुगन्धि आती है। रुधिर-विकार को दूर करने में इससे बढ़ कर दूसरी ओषधि नहीं है। अनंतमूल की जड़ प्रयोग ज्योतिष-तंत्र-मन्त्र में भी किया जाता है।
अनन्तमूल का आयुर्वेदिक गुण धर्म (Ayurvedic Properties of Anantmool)
आयुर्वेद अनुसार अनंतमूल, मधुर, शुक्रजनक, भारी, कड़वी और सुगन्धित होती है। इसका सेवन करने से शरीर की दुर्गन्धि, मन्दाग्नि, श्वास, खाँसी, अरुचि, आम, त्रिदोष, विष, रुधिर विकार, प्रदररोग, कफ, अतिसार, तृषा, दाह, रक्त, पित्त और वात नष्ट हो जाते है।
अनंतमूल के विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Anantmool in various diseases in Hindi)
मूत्र रोग: अल्प मूत्रता, मूत्र कृच्छ तथा बीपीएच (बिनाइन प्रोस्टैटिक हाइपरप्लेसिया) में 5 ग्राम जड़ का चूर्ण दूध के साथ दिया जाता है।
रक्तशोधक: इसकी जड़ के 5 ग्राम चूर्ण का दिन में दो बार पानी के साथ सेवन तथा इसके काढ़े से नियमित रूप से चेहरा धोना एक अच्छा रक्तशोधक
आंखों की जलन: इसकी जड़ का गाढ़ा लेप बंद आँखों के ऊपर लगाना आँखों की जलन में असरकारक है।
ज्वर एवं मूत्र संक्रमण: इसकी जड़ के 5 ग्राम दरदरे चूर्ण को 100 मि०ली० पानी में तब तक उबालें जब तक यह 25 मि०ली० न रह जाए। इस काढ़े को दिन में 2 बार पीने से ज्वर तथा मूत्र संक्रमण में फायदा होता है। गर्मियों में यह शरीर की गर्मी को कम करने में भी सहायक होता है ।
बवासीर: दस्त, ल्यूकोडर्मा तथा बवासीर इत्यादि में इसकी जड़ के 5 ग्राम चूर्ण को दिन में दो बार दिया जाता है।
घाव: सारिवा की जड़ के लेप को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।