अमलतास (Golden Shower Tree)

अमलतास (Pudding-pipe tree), भारत में पाए जाने वाला एक सर्वसुलभ वृक्ष है। यह अपने औषधीय गुणों के कारण भी जाना जाता है। आइये जानते है अमलतास का उत्पादन और औषधीय प्रयोग से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी-

Amaltas

Contents

अमलतास का विभिन्न भाषाओं में नाम (Amaltas Called in Different Languages)

ऐसा माना जाता है कि फूल खिलने के बाद 45 दिन में बारिश होती हैं। इस कारण इसे गोल्डन शॉवर ट्री (golden shower) या इंडियन रेन इंडिकेटर ट्री (Indian rain indicators) भी कहा जाता हैं। अमलताश का विभिन्न भाषाओं में निम्न नाम है-

वैज्ञानिक नामकैसिया फिस्टुला (Cassia Fistula)
अंग्रेजी कैसिया (Cassia), गोल्डन शॉवर (Golden shower), इण्डियन लेबरनम (Indian laburnum), परजिंग स्टिक (Purging stick),  पॅरजिंग कैसिया (Purging cassia)
संस्कृतआरग्वध
हिंदी अमलतास
मराठीबाहवा
बंगालीसोंदाल, सोनालु
गुजरातीगरमालो
नेपालीअमलतास
तेलगुरेलचट्टू
कन्नड़कक्केमर
असामीसोनास
अरबीखियारशम्बर

अमलतास पेड़ का सामान्य परिचय (Introduction of Golden Shower Tree)

अमलतास का वृक्ष प्रायः सभी जगह पाया जाता है। यह वृक्ष काफी बड़ा होता है, इसकी ऊंचाई 25-30 फुट तक होती है। वृक्ष की छाल मटमैली और कुछ लालिमा लिए होती है।

फूल और पत्ते: इसके पत्ते लगभग एक फुट लंबे, चिकने और जामुन के पत्तों के समान होते हैं। फूल डेढ़ से ढाई इंच व्यास के चमकीले तथा पीले रंग के होते हैं। अप्रैल, मई में पूरा पेड़ पिले फुलों के लंबे लंबे गुच्छोंसे भर जाता है।

फलियां: इसकी फलियां 1-2 फुट लंबी और बेलनाकार होती हैं। कच्ची फलियां हरी और पकने पर काले रंग की हो जाती है। फली के अंदर 25 से 100 तक चपटे एवं हलके पीले रंग के बीज होते हैं।

अमलतास का गोंद: वृक्ष की शाखाओं को छीलने से उनमें से भी लाल रस निकलता है जो जमकर गोंद के समान हो जाता है।

अमलतास का पेड़ कैसे उगाया जाता हैं (How to grow Amaltas tree)

अमलतास के वृक्ष स्वतः उगते हैं और इन्हें सप्रवास भी उगाया जाता है। आइए जानते है अमलतास का उत्पादन कैसे किया जाता है?

अमलताश का उत्पादन: अमलतास का वृक्ष लगाने के लिए इसकी पकी फलियों को तोड़कर इनके भीतर से स्वच्छ, साफ, बिना कटे-फटे बीज अलग कर लिए जाते हैं। अब इन बीजों को उबले पानी पर चौबीस घंटे भिगोकर रखा दें। इससे बीज मुलायम हो जाते हैं।

अक्तूबर-नवम्बर में इन बीजों को क्यारियों में बो दिया जाता हैं। इससे बीज शीघ्र ही अंकुरित होने लगते हैं। फिर इन्हें निकालकर गमलों में अथवा पॉलीथिन की थैलियों में लगा देते हैं। इन पौधों को फरवरी-मार्च तक गमलों अथवा पॉलीविन की थैलियों में रखा जा सकता है। इसके बाद जून-जुलाई में इन्हें स्थायी रूप से एक-दो बरसात होने के बाद स्थायी स्थान पर लगा दिया जाता है।

अमलतास के वृक्ष लगाते समय एक-दूसरे के मध्य लगभग 3 मीटर का गेप रखते हैं तथा एक हेक्टेयर में 1500 से अधिक पौधे नहीं लगाते हैं।

विशेष: इसके बीजों को तैयार करने, क्यारियों में लगाने तथा स्थायी स्थान पर रोपने के समय में अलग-अलग स्थानों के मौसम के आधार पर भिन्नता देखी जाती हैं।

अमलतास का गुणधर्म (Properties of Amaltas)

आयुर्वेदिक मत: आयुर्वेद मतानुसार अमलतास के रस में मधुरता, तासीर में शीतल, भारी, स्वादिष्ठ, स्निग्ध, कफ नाशक, पेट साफ करने वाला है। साथ ही यह ज्वर, दाह, हृदय रोग, रक्तपित्त, वात व्याधि, शूल, गैस, प्रमेह एवं मूत्र कष्ट नाशक है। और पढें: जानें, आयुर्वेद की ABCD

यूनानी मत: मतानुसार अमलतास की प्रकृति गर्म होती है। यह ज्वर प्रदाह, गठिया रोग, गले की तकलीफ, आंतों का दर्द, रक्त की गर्मी शांत करने में और नेत्र रोगों में उपयोगी होता है। और पढेँ: वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति

अमलतास में पौषक तत्व (Nutritional value of Amaltas)

वैज्ञानिक मतानुसार इसकी रासायनिक संरचना के विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि इसके पत्तों और फूलों में ग्लाइकोसाइड, तने की छाल में 10 से 20 प्रतिशत टैनिन, जड़ की छाल में टैनिन के अलावा ऐन्थ्राक्विनीन, फ्लोवेफिन तथा फल के गूदे में शर्करा 60 प्रतिशत, पेक्टीन, ग्लूटीन, क्षार, भस्म और पानी होते हैं।

हानिकारक प्रभाव: अमलतास का औषधि के रूप में प्रयोग करने से पेट में दर्द, मरोड़ पैदा होती है, अतः सावधानी बरतें।

विभिन्न रोगों में प्रयोग (Use of Golden Shower in various diseases)

अमलतास प्रकृति की अमूल्य भेंट है। आयुर्वेद में इस वृक्ष के सब भाग औषधि के काम में आते हैं। इसकी जड़ों की छाल, फलों का गूदा, फूल और पत्तियों सभी की सहायता से विभिन्न प्रकार के रोगों की औषधियों तैयार की जाती हैं। यदि इनका विस्तार से वर्णन किया जाए तो एक ग्रन्थ तैयार हो जाएगा। यहां पर कुछ प्रमुख औषधीय प्रयोग दिए जा रहे है-

चर्म रोग: अमलतास चर्म रोगों में विशेष रूप से लाभ पहुंचाता है। अमलताश की जड़, तने की छाल, पत्ते, फूल और फली सब बराबर-बराबर लेकर पानी में भिगोकर फिर पीसकर मलहम तैयार कर लें। इस मलहम को लगाने से फोड़े-फुन्सी, दाद-खाज, खुजली आदि में लाभ होता हैं। और पढ़ें: आहार चिकित्सा से एक्जिमा का उपचार

गले की तकलीफें: 10 ग्राम अमलतास की जड़ की को 200 मिलीलीटर पानी में डालकर एक चौथाई पानी होने तक पकाएं। एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से गले की सूजन, दर्द, टॉसिल्स में आराम मिलता है। और पढ़ें: गले मे खरास के कारण और उपचार

मुँह के छाले: अमलतास की गिरी और धनिया को बराबर मात्रा में पीसकर उसमें चुटकी भर कत्था मिलाकर तैयार चूर्ण को आधा चम्मच दिन में 2-3 बार चूसने से मुंह के छालों में आराम मिलता है।

बच्चों का पेट दर्द: इसके बीजों की गिरी को पानी में घिसकर नाभि के आस-पास लेप लगाने से पेट दर्द और गैस की तकलीफ में आराम मिलता है।

बिच्छू का विष : अमलतास के बीजों को पानी में घिसकर बिच्छू के दंश वाले स्थान पर लगाने से कष्ट दूर होता है।

कब्ज़: गुलाब के सूखे फूल, सौंफ और अमलतास की गिरी बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। एक कप पानी में दो चम्मच चूर्ण घोलकर शाम को रख दें। रात्रि में सोने से पूर्व छानकर पीने से अगली सुबह कब्ज़ में राहत मिलेगी।और पढ़ें: कब्ज के कारण लक्षण और उपचार

वमन (उल्टी): हेतु अमलतास के 5-6 बीज पानी में पीसकर पिलाने से हानिकारक खाई हुई चीज़ वमन में निकल जाती है। और पढ़ें: अनेक रोगों का एक लक्षण है उल्टी

पेशाब न होना: अमलतास के बीजों की गिरी को पानी में पीसकर तैयार गाढ़े लेप को नाभि के निचले भाग (यौनांग से ऊपर) लगाने से पेशाब खुलकर आता हैं।

स्त्री रोग: अमलतास का उपयोग स्त्री रोगों की औषधियाँ तैयार करने में भी किया जाता है। यह प्रमेह रोग में अत्यन्त लाभकारी है।

दांत के दर्द: अमलतास का गोंद पीसकर दाँत लगाने से दाँत के दर्द में लाभ होता हैं।

पीठ, कमर का दर्द : सोंठ का चूर्ण अलसी के तेल में गर्म करके पीठ, कमर की मालिश करने से दर्द की शिकायत दूर हो जाती है।

कान दर्द: अलसी के बीजों को प्याज के रस में पकाकर छान लें। इसे दुखते कान में 2-3 बूंदें टपकाएं, दर्द दूर हो जाएगा। और पढ़ें: कान का मैल कैसे साफ करें

स्तनों में दूध की वृद्धि : अलसी के बीज एक-एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ निगलने से प्रसूता के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।

खांसी : सिंके हुए अलसी के बीजों का चूर्ण बना लें। इसमें एक चम्मच की मात्रा में शहद मिलाकर चटाने से खांसी दूर होती है।

शारीरिक दुर्बलता : एक गिलास दूध के साथ सुबह-शाम एक-एक चम्मच अलसी के बीज निगलते रहने से शारीरिक दुर्बलता दूर होकर पुष्टता आती है। और पढ़ें: वजन बढ़ाने के लिए डाइट में प्लान

विरेचक के रूप में प्रयोग: अमलतास को सर्वोत्तम विरेचक कहा गया है। इसके लिए अमलतास की फली का गूदा उपयोग में लाया जाता है। अमलतास के गूदे का नियमित रात में सोते समय पानी अथवा दूध के साथ सेवन करने से पेट के रोग नहीं होते।

अमलतास सेवन मात्रा (Amaltas Intake Quantity)

अमलतास पुष्प तथा फल का गूदा 5 से 10 ग्राम, जड़ का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक सेवन किया जा सकता है।

4.9/5 - (68 votes)