Allopathy vs Ayurveda: जानें, एलोपैथी और आयुर्वेद में अंतर
Allopathy vs Ayurveda: इन दिनों एलोपेथी दवाओं के साथ-साथ आयुर्वेद की ओर भी दुनिया का आकर्षण बड़ा है। हालांकि आयुर्वेद भारत में सदियों से प्रचलित है। आयुर्वेदिक दवाओं का असर स्थायी होता है, दवा का असर होने में ऐलोपैथिक की तुलना में अधिक समय लगता है। इसलिए ऐलोपैथिक का प्रचलन बढ़ता चला गया।
लेकिन आज व्यक्ति स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गया है और एलोपैथी के साइड इफ़ेक्ट को देखकर इसका अल्ट्रेनेटिव ढूंढने लगे है। ऐसे में अक्सर लोगों के मन में यह जिज्ञासा होती है कि कौन सा इलाज है ज्यादा बेहतर है आयुर्वेद या एलोपैथी? इसलिए आज हम आयुर्वेद और ऐलोपैथिक का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे-
Allopathy vs Ayurveda | आयुर्वेद और एलोपैथी में अंतर
Philosophy | Allopathy | Ayurveda |
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मनुष्य को परिभाषित | एलोपेथिक में मनुष्य को एक भौतिक शरीर के रूप में देखा जाता है, और केवल शारीरिक क्रियाकलापों को ही महत्व दिया जाता है। सभी लोग मूल रूप से एक जैसे हैं। | आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और आत्मा तीनों को महत्व दिया जाता है। प्रत्येक मनुष्य भिन्न है, और इनके उपचार करने का तरीका भी हैं। |
रोग का उपचार | रोग के लक्षण को आधार मानकर उपचार किया जाता है। | शरीर की विकृति को बेलेंस करके उपचार किया जाता है। |
रोग का पता लगाने की विधि | लक्षण, किलीनिकल परिक्षण। | रोग लक्षण, नाडी परिक्षण, आवश्यकता पढने पर क्लिनिकल परिक्षण। |
उपचार विचार | * रोग के लक्षण को दबाना। * जल्द से जल्द रोग ठीक करना। * चिकित्सक विशेषज्ञ है; रोगी की भागीदारी कम से कम है। * सिंथेटिक दवाई, सर्जरी। * दवाई का दुष्प्रभाव होता है। | * रोग को जड़ मूल से खत्म करना। * चिकित्सक विशेषज्ञ है; परंतु रोगी की भागीदारी आवश्यक। * औषधि, शल्य चिकित्सा। * प्राक्रतिक दवाइयां; (जडी-बुटी, भस्म आदि) * औषधि के सही मात्रा और चयन से साइड इफ़ेक्ट नही। |
सकारात्मक / नकरात्मक पक्ष | आपात स्थिति और सर्जरी के लिए संजीवनी। महंगी चिकित्सा पद्धति। | छोटे-मोटे से लेकर असाध्य रोग तक लाभकारी। सस्ती चिकित्सा पद्धति। |
प्रसार के लिए कदम | सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जाता है ज्ञान की कड़ी सुरक्षा की जाती है। | सरकार द्वारा सौतेला व्यवहार किया जाता है। |
विश्व में स्थिति | ऐलोपेथी सम्पूर्ण विश्व में मौजूद है भारत में इस समय ऐलोपैथी के 12 से लाख अधिक डॉक्टर है (आकडे 2019) | मुख्यतः भारत, नेपाल में प्रचलित है। |
आयुर्वेद या एलोपेथी कौन है ज्यादा असरदार | Which is better allopathy or Ayurveda?
जब हम सेहत, बीमारी या व्याधि की बात करते हैं, तो उनके दो बुनियादी प्रकार हैं।
- शरीर के अंदर उत्पन व्याधि
- बाहरी जीवाणु से उत्पन्न बीमारी
एलोपैथी चिकित्सा पद्धति संक्रमणों से निपटने में सबसे प्रभावी है, इसमें कोई शक नहीं है। मगर मनुष्य की ज्यादातर बीमारियां खुद की उत्पन्न की हुई होती हैं। जैसे माइग्रेन, अस्थमा, हार्ट ब्लोकेज, मधुमेह, थायरॉइड आदि।
एक्सपर्ट का मानना है कि एलोपैथी में ऐसी बीमारी को सिर्फ संभाला जा सकता है। वह इन बीमारी को जड़ से खत्म नहीं करती क्योंकि मुख्य रूप से इसमें लक्षणों का इलाज किया जाता है। ऐसी पुरानी बीमारियों के लिए आयुर्वेद बहुत कारगर साबित हुआ है।
जब हो इमरजेंसी: अगर आप गंभीर स्थिति में हैं, तो ऐसे में ऐलोपैथिक डॉक्टर के पास जाना चाहिए। आपात स्थिति के लिए एलोपैथी में बेहतर व्यवस्था है। आप आयुर्वेद के पास तभी जाएं, जब आपकी समस्याएं हल्की हो और आपके पास ठीक होने का प्रयाप्त समय हो।
सभी चिकित्सा पद्धति के मूल में आयुर्वेद है- आयुर्वेद तो हमारी आपकी ज़िन्दगी का हिस्सा है। इसे कैसे कोई अलग कर सकता है? खुद एलोपैथ की कई दवाइयां आयुर्वेद से निकली हैं। होमियोपैथी का तो आधार ही जड़ी बूटी है।
एक अनुमान के मुताबिक 70 फीसदी मॉडर्न मेडिसिन का स्रोत पेड़ पौधे ही हैं। WHO (world health organization) की एसेंशियल मेडिसीन की 252 दवाइयों की लिस्ट में शामिल 11 फीसदी दवाई का स्रोत पेड़ पौधे हैं।
निष्कर्ष- ये सवाल ही बेमानी हो जाता है की आयुर्वेद और एलोपैथ में कौन बेहतर है। बेहतर सवाल ये है कि कैसे आयुर्वेद और एलोपैथ को एक दूसरे से जोड़कर लोगों को फायदा पहुंचाया जाए।
उदाहरण के लिए किसी को दिल का दोहरा पढ़ जाए या अचानक एक्सिडेन्ट हो जाए। तो ऐसे में व्यक्ति वह घर मे काढ़ा बनाने या आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास जाने की बजाय हॉस्पिटल (ऐलोपैथिक) ही दौड़ेगा।
लेकिन दिल की बीमारी हो ही नहीं या एक्सिडेन्ट के दुष्प्रभाव को जल्दी कैसे दूर किया जाए। इसके लिए आयुर्वेद बेहतर साबित हो सकता है। हम कहते भी यही हैं कि इलाज की जो पद्धति जान बचाए, वही सही है।